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बिहार में SIR की डेडलाइन नज़दीक: “दो दलित गाँवों की कहानी — एक ने कागज़ात पूरे किए, दूसरा पूछ रहा सवाल”

In Politics
August 24, 2025

कागज़ पूरे करने की दौड़ में गांवों की अलग तस्वीरें सामने आईं

पटना: बिहार में Social Impact Report (SIR) की अंतिम तिथि नज़दीक आते ही गांव-गांव में हलचल बढ़ गई है। खासतौर पर दलित बस्तियों में इसका असर साफ़ देखा जा रहा है। एक ओर कुछ गाँवों ने सभी ज़रूरी कागज़ात समय रहते जमा कर दिए हैं, तो वहीं दूसरी ओर कुछ गाँव सवाल उठा रहे हैं — “हमें ही क्यों यह सब करना पड़ रहा है?”

एक गाँव की तैयारी पूरी

पहले गाँव के लोगों ने सरकारी निर्देशों के मुताबिक़ अपने दस्तावेज़ पूरे किए। पंचायत स्तर से लेकर ब्लॉक कार्यालय तक भागदौड़ कर ग्रामीणों ने आधार, भूमि-पत्र और अन्य पहचान दस्तावेज़ इकट्ठा किए। स्थानीय लोगों का कहना है कि कड़ी मेहनत के बावजूद राहत इस बात की है कि उनका गाँव अब आधिकारिक रिकॉर्ड में साफ़-सुथरा दर्ज हो जाएगा।

दूसरा गाँव कर रहा विरोध

वहीं, दूसरे गाँव के ग्रामीणों का गुस्सा फूट पड़ा। उनका कहना है कि दशकों से उपेक्षा झेलने के बाद अब अचानक सरकार उनसे इतने सारे कागज़ माँग रही है। एक ग्रामीण ने सवाल किया — “क्या हमारे अस्तित्व को साबित करने के लिए हर बार नए कागज़ दिखाने होंगे?”

प्रशासन की दलील

जिला प्रशासन का कहना है कि यह प्रक्रिया पारदर्शिता और योजनाओं के बेहतर लाभार्थियों की पहचान के लिए की जा रही है। अधिकारियों के अनुसार, बिना कागज़ात पूरा किए योजनाओं का लाभ सभी तक पहुँचाना संभव नहीं है।

निष्कर्ष

बिहार के इन दोनों गाँवों की कहानी यह दिखाती है कि सरकारी प्रक्रियाओं में जागरूकता और विश्वास कितना बड़ा फर्क डाल सकता है। जहाँ एक गाँव ने नियम मानकर आगे का रास्ता आसान कर लिया है, वहीं दूसरा गाँव अब भी अपनी पहचान पर सवाल उठाए बैठा है।

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Rajneeti Guru Author