
बिहार राज्य धार्मिक ट्रस्ट बोर्ड ने राज्य के पंजीकृत मंदिरों और मुक्तों को नया निर्देश जारी किया है जिसमें उन्हें मंदिर प्रांगण में अखाड़े स्थापित करने और श्रद्धालुओं में पूजा-अनुष्ठानों के प्रति जागरूकता बढ़ाने की अपील की गई है। इस कदम का उद्देश्य धार्मिक आयोजनों को व्यवस्थित रूप देना, पारंपरिक रीति-रिवाजों को संरक्षित करना और त्योहारों या दैनिक पूजा के दौरान प्रांगण के उपयोग तथा स्थिति में सुधार लाना है।
बोर्ड ने मंदिरों और ट्रस्टों से कहा है कि वे मंदिर के प्रांगणों में खुली जगहों या मौजूदा आंगनों को अखाड़े के रूप में चिन्हित करें और भक्तों को पूजा समय, स्वच्छता मानदंड, जूते-चप्पल छोड़ने की व्यवस्था, बैठने-असाइनमेंट इत्यादि की सूचना पहले से दें। निर्देशों में यह भी कहा गया है कि मुक्तों और ट्रस्टों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि भक्तों को भारी भीड़ के दौरान अनावश्यक दबाव न हो और पूजा-अनुष्ठान शांति और श्रद्धा के साथ संपन्न हो सकें। बोर्ड के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, “अखाड़ों जैसी सुव्यवस्थित व्यवस्था बड़े आयोजनों के समय अराजकता से बचने में मदद करेगी, और जागरूकता से पूजा-अनुष्ठानों में मर्यादा और सुरक्षा बनी रहेगी।”
यह निर्देश ऐसे समय में आया है जब कई पुराने मंदिरों में प्रांगणों की स्थिति, बुनियादी सुविधाओं की कमी, भीड़ प्रबंधन, साफ-सफाई और भक्तों के अनुभव की चुनौतियाँ बढ़ी हुई हैं। कई मंदिरों में कच्चे पग paths, पर्याप्त प्रकाश, स्वच्छ पानी और साफ बैठने की व्यवस्था नहीं है, जिससे पूजा के समय श्रद्धालुओं को असुविधा होती है।
पृष्ठभूमि देखें तो बिहार हिंदू धार्मिक ट्रस्ट एक्ट, 1950 के जरिए राज्य ने मंदिरों, मुक्तों और धार्मिक ट्रस्टों के प्रबंधन, पंजीकरण और उनकी संपत्तियों के मामलों में संगठित नियंत्रण स्थापित किया है। पिछले वर्षों में सरकार ने जिला मजिस्ट्रेटों से कहा है कि अनपंजीकृत मंदिर, मठ-मुक्तों और ट्रस्टों को जल्द पंजीकृत करें और उनकी अचल संपत्तियों की जानकारी बोर्ड को सौंपें। कानून मंत्री नितिन नबिन ने पारदर्शिता पर जोर दिया है और कहा है कि पंजीकरण न करने वालों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई होगी।
मंदिर व्यवस्थापक समितियों और स्थानीय नागरिक निकायों ने त्योहारों जैसे छठ, दुर्गा पूजा और राम नवमी के समय ट्रैफिक जाम, स्वच्छता की समस्या और सार्वजनिक व्यवस्था संबंधी दिक्कतों को अक्सर झेला है। ऐसे मामलों ने यह दर्शाया है कि धार्मिक आयोजनों की तैयारी में पूर्व सतर्कता और संरचनात्मक सुधार की आवश्यकता है।
संभावित परिणाम यह हो सकते हैं कि यदि यह निर्देश प्रभावी रूप से लागू हो जाए तो भक्तों के अनुभव में सुधार होगा, मंदिर भूमि से जुड़ी संपत्तियों पर विवाद कम होंगे और धार्मिक ट्रस्टों के बीच सामुदायिक सहभागिता बढ़ेगी। लेकिन छोटे मुक्तों और ट्रस्टों के लिए अखाड़े निर्माण, सुविधा प्रबंधन और जागरूकता कार्यक्रमों को चलाने में आर्थिक बोझ हो सकता है।
यह देखना होगा कि राज्य बोर्ड किस तरह से अनुपालन की निगरानी करेगा, क्या पंडित समितियों और ट्रस्ट-मुक्तों को वित्तीय सहयोग मिलेगा, और क्या इस प्रकार की व्यवस्था के लिए कोई समय सीमा या अनुदान संबंधी प्रावधान होंगे। धार्मिक संस्थाओं, स्थानीय प्रशासनों और समुदायों की साझेदारी इस पहल की सफलता में निर्णायक होगी।