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बिहार चुनाव बदल सकते हैं एनडीए-INDIA समीकरण

In Politics
September 25, 2025

बिहार एक और अहम चुनावी जंग की ओर बढ़ रहा है। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि इसका असर केवल राज्य की राजनीति तक सीमित नहीं रहेगा, बल्कि राष्ट्रीय स्तर पर गठबंधनों के समीकरणों को भी प्रभावित करेगा। सत्ताधारी राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) के नेता और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार तथा विपक्षी INDIA गठबंधन के बीच मुकाबला ऐसे नतीजे ला सकता है, जो लंबे समय से चले आ रहे साथियों के रिश्तों को भी नए सिरे से परिभाषित करे।

भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के लिए यह स्थिति चुनौतीपूर्ण है। यदि नीतीश कुमार के नेतृत्व में एनडीए को जीत मिलती है, तो इससे भाजपा को संख्यात्मक लाभ तो मिलेगा, लेकिन साथ ही नीतीश की दिल्ली में सौदेबाजी की ताकत भी बढ़ जाएगी। यह स्थिति भाजपा की गठबंधन में प्रमुखता को जटिल बना सकती है।

नीतीश कुमार को लंबे समय से बिहार की राजनीति का “किंगमेकर” कहा जाता है। वे राजनीतिक परिस्थितियों के अनुसार कई बार पाला बदल चुके हैं — कभी एनडीए के साथ, तो कभी राजद-नीत विपक्षी खेमे के साथ। कुर्मी और अन्य पिछड़े वर्ग के मतदाताओं पर उनकी पकड़ ने उन्हें राज्य की राजनीति में निर्णायक बनाए रखा है।

विश्लेषकों के अनुसार भाजपा ने बिहार में अपनी पकड़ तो मजबूत की है, लेकिन नीतीश कुमार की ईबीसी (अति पिछड़ा वर्ग) और महिला मतदाताओं में पैठ आज भी उनकी सबसे बड़ी ताकत है। यदि एनडीए नीतीश के नेतृत्व में जीत दर्ज करता है, तो वे बिहार के विकास और संसाधन बंटवारे जैसे मुद्दों पर ज्यादा दखल की मांग कर सकते हैं।

दूसरी ओर, INDIA गठबंधन — जिसमें राजद, कांग्रेस और वाम दल शामिल हैं — पिछड़े वर्ग, मुस्लिम मतदाता और युवाओं की नाराजगी पर दांव लगा रहा है। तेजस्वी यादव जैसे नेता बेरोजगारी, पलायन और कृषि संकट जैसे मुद्दों को प्रमुखता से उठा रहे हैं। साथ ही, वे नीतीश कुमार को “अवसरवादी” और भाजपा को “हावी” बताकर मतदाताओं को साधने की कोशिश कर रहे हैं।

गठबंधन की सबसे बड़ी चुनौती विभिन्न गुटों को एक मंच पर लाना है। फिर भी, नीतीश की बार-बार की राजनीतिक अदला-बदली और भाजपा की बढ़ती पकड़ को मुद्दा बनाकर विपक्ष मतदाताओं को आकर्षित करने की कोशिश कर रहा है।

दिल्ली में इस चुनाव पर बारीकी से नजर रखी जा रही है। यदि नीतीश की अगुवाई में एनडीए को मजबूत जीत मिलती है, तो यह अन्य राज्यों के क्षेत्रीय दलों को भी केंद्र सरकार के सामने अधिक अधिकार मांगने के लिए प्रेरित कर सकता है। वहीं, अगर नीतीश को झटका लगता है तो भाजपा गठबंधन में और मजबूत होकर उभर सकती है।

राजनीतिक वैज्ञानिक संजय कुमार का कहना है, “बिहार लंबे समय से गठबंधन राजनीति की प्रयोगशाला रहा है। आगामी चुनाव यह परखेगा कि क्या ये गठबंधन राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर टिकाऊ साबित हो सकते हैं।”

1990 के दशक से बिहार की राजनीति गठबंधनों और दल-बदल से तय होती रही है। लालू प्रसाद यादव के राजद का उदय, नीतीश कुमार का सुधारवादी छवि के साथ उभरना और भाजपा का राष्ट्रीय स्तर पर विस्तार — इन सभी ने राज्य की राजनीति को आकार दिया है। बिहार में शायद ही कभी किसी एक दल का दबदबा रहा हो, बल्कि सत्ता का समीकरण हमेशा गठबंधनों पर टिका है।

जैसे-जैसे मतदान की तारीख नजदीक आती जा रही है, सवाल केवल यह नहीं है कि बिहार की सत्ता किसके हाथों में होगी, बल्कि यह भी है कि क्षेत्रीय नेता जैसे नीतीश कुमार भाजपा के केंद्रीकरण के सामने कितना प्रभाव बनाए रख पाएंगे, और विपक्षी INDIA गठबंधन सत्ता-विरोधी लहर का कितना फायदा उठा पाएगा।

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Rajneeti Guru Author