
बिहार विधानसभा चुनाव जैसे-जैसे नज़दीक आ रहे हैं, राजनीतिक परिदृश्य में कई अप्रत्याशित घटनाक्रम देखने को मिल रहे हैं। इनमें सबसे अहम है भोजपुरी गायक-अभिनेता पवन सिंह की भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) में वापसी। बिहार और उत्तर प्रदेश में अपनी अपार लोकप्रियता के लिए जाने जाने वाले पवन सिंह अब एक बार फिर भाजपा की चुनावी रणनीति के केंद्र में हैं, खासकर शहाबाद क्षेत्र में।
पवन सिंह की वापसी केवल उनकी स्टार छवि तक सीमित नहीं है। यह पार्टी समीकरणों को सुधारने की कवायद भी है। कभी बागी माने जाने वाले सिंह को अब फिर से भाजपा ने अपने पाले में लिया है, ताकि वे राजपूत वोट बैंक को सक्रिय कर सकें। कयास लगाए जा रहे हैं कि उन्हें भोजपुर ज़िले की आरा सीट से उतारा जा सकता है, जिसे पश्चिम बिहार में पार्टी के पुनरुत्थान के लिए अहम माना जाता है।
पवन सिंह खुद भाजपा की नीतियों और दृष्टि पर भरोसा जता चुके हैं। पार्टी सूत्रों का कहना है कि उनकी वापसी का उद्देश्य एनडीए में एकजुटता का संदेश देना भी है, जिसने हाल के वर्षों में कई आंतरिक चुनौतियों का सामना किया है।
भोजपुर, बक्सर, रोहतास और कैमूर को मिलाकर बनने वाला शहाबाद क्षेत्र 22 विधानसभा सीटों वाला इलाका है। पिछली बार भाजपा नेतृत्व वाले गठबंधन का यहां प्रदर्शन संतोषजनक नहीं रहा था। विश्लेषकों का मानना है कि पार्टी इस बार जातीय समीकरण बदलकर यहां अपनी पकड़ मजबूत करना चाहती है। राजपूत और कुशवाहा समुदायों के वोट को साथ लाकर भाजपा विपक्ष को कड़ी टक्कर देने की रणनीति पर काम कर रही है।
इतिहास गवाह है कि शहाबाद का प्रभाव पूरे बिहार की राजनीति पर पड़ा है। यहां के नेता कई बार पूरे राज्य के चुनावी नतीजों को प्रभावित कर चुके हैं। यही वजह है कि हर बड़ी पार्टी इस क्षेत्र को अपनी प्राथमिकता में रखती है। भाजपा के लिए यहां सफलता का मतलब न केवल सीटों में बढ़त होगा बल्कि जातीय विभाजनों को पाटने वाली छवि भी मजबूत होगी।
जातीय राजनीति से परे, पवन सिंह का स्टार पावर भी भाजपा की उम्मीदों का अहम हिस्सा है। उनकी भोजपुरी फिल्मों और गीतों की लोकप्रियता उन्हें युवाओं और प्रवासी मज़दूरों तक पहुंच दिलाती है। भाजपा का मानना है कि जनसंपर्क और जातीय समीकरण का यह मिश्रण चुनाव में अतिरिक्त बढ़त दे सकता है।
हालांकि राजनीतिक जानकार चेतावनी देते हैं कि स्टार अपील भीड़ तो जुटा सकती है, लेकिन उसे वोटों में बदलना आसान नहीं होता। असली चुनौती होगी कि पवन सिंह स्थानीय मुद्दों—जैसे बेरोजगारी, पलायन और आधारभूत सुविधाओं—पर कितनी गहराई से जुड़ाव दिखाते हैं।
आशाओं के बावजूद कई मुश्किलें भी हैं। अगर सिंह को सीधे आरा से टिकट दिया जाता है, तो स्थानीय नेता उपेक्षित महसूस कर सकते हैं। वहीं, राजपूत और कुशवाहा समुदायों के बीच संतुलन बनाना आसान नहीं है, क्योंकि दोनों की क्षेत्रीय महत्वाकांक्षाएँ अलग-अलग हैं। भाजपा को यह संतुलन साधने में कड़ी मेहनत करनी होगी।
इसके अलावा विपक्षी दल सिंह की पिछली दूरी को मुद्दा बना सकते हैं और उनकी वापसी को अवसरवाद करार दे सकते हैं। वे यह भी सवाल उठा सकते हैं कि क्या सेलिब्रिटी उम्मीदवार वास्तव में जनता की समस्याओं का समाधान कर पाएंगे या वे केवल वोट आकर्षित करने का चेहरा भर हैं।
बिहार विधानसभा चुनाव 2025 देश के सबसे अहम मुकाबलों में से एक माना जा रहा है। बेरोजगारी, विकास, पलायन और शासन जैसे मुद्दे चुनावी बहस के केंद्र में हैं। भाजपा का पवन सिंह को वापस लाना इस बात का संकेत है कि पार्टी किसी भी अहम क्षेत्र को गंवाना नहीं चाहती और अपनी रणनीति को और व्यापक बना रही है।
अगर यह दांव सफल होता है, तो पवन सिंह न सिर्फ स्टार प्रचारक बन सकते हैं बल्कि भविष्य की राजनीति में एक मजबूत चेहरा भी। लेकिन अगर यह कदम उलटा पड़ता है, तो भाजपा को अपने कार्यकर्ताओं और सहयोगियों की नाराज़गी झेलनी पड़ सकती है।
फिलहाल, सबकी नज़रें आरा और शहाबाद क्षेत्र पर टिकी हैं, जहां पवन सिंह की वापसी ने चुनावी माहौल को और रोमांचक बना दिया है।