बिहार विधानसभा चुनाव के पहले चरण की तैयारी जोरों पर है, और सभी की निगाहें उन 121 सीटों पर टिकी हैं जहां मतदान होने वाला है। ये सीटें इसलिए खास हैं क्योंकि 2020 के चुनाव में इन्हीं क्षेत्रों में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) और महागठबंधन के बीच लगभग बराबरी की स्थिति रही थी। यही संतुलन इस बार के चुनाव को बेहद दिलचस्प बना रहा है।
2020 के विधानसभा चुनाव में एनडीए और महागठबंधन ने इन 121 सीटों को लगभग बराबर बाँटा था। हालांकि अंततः एनडीए ने सरकार बनाई, लेकिन दोनों के बीच अंतर बहुत कम था। यही कारण है कि 2025 का यह चुनाव एक बार फिर से करीबी मुकाबले का संकेत दे रहा है।
इस चरण की विशेषता यह है कि महागठबंधन के भीतर कुछ सीटों पर “फ्रेंडली फाइट्स” देखने को मिल रही हैं। 11 सीटों में से पांच ऐसी हैं जहां सहयोगी दल एक-दूसरे के खिलाफ मैदान में हैं। इन सीटों पर वोट बंटने की आशंका है, जो एनडीए के लिए लाभदायक साबित हो सकती है।
पटना के एक राजनीतिक विश्लेषक ने कहा,
“ऐसे दोस्ताना मुकाबले ऊपर से मामूली लगते हैं, लेकिन जहां अंतर कम हो, वहां कुछ सौ या हजार वोट भी नतीजा पलट सकते हैं।”
पहले चरण में मध्य और दक्षिण बिहार के ग्रामीण व अर्ध-शहरी इलाके शामिल हैं। यह चरण दोनों गठबंधनों के लिए रणनीतिक रूप से अहम है क्योंकि शुरुआती जीत पूरे चुनावी माहौल को प्रभावित कर सकती है।
एनडीए विकास और स्थिरता पर जोर दे रहा है, जबकि महागठबंधन महंगाई, बेरोजगारी और सामाजिक न्याय जैसे मुद्दों को मुख्य बना रहा है। युवा मतदाताओं को लुभाने के लिए दोनों ओर से डिजिटल अभियान और जनसंपर्क कार्यक्रम तेज़ किए गए हैं।
महागठबंधन के लिए ये ‘मित्रवत मुकाबले’ असली एकजुटता की परीक्षा हैं। कई जगह मतदाताओं में भ्रम है कि गठबंधन का असली उम्मीदवार कौन है। इससे विपक्षी गठबंधन को फायदा मिल सकता है।
एक चुनाव विशेषज्ञ ने कहा,
“गठबंधन राजनीति में संदेश की स्पष्टता सबसे ज़रूरी होती है। जहां दो उम्मीदवार एक ही पक्ष से हों, वहां असली विरोधी लाभ ले जाता है।”
एनडीए इस आंतरिक मतभेद को मुद्दा बनाकर खुद को एकजुट और अनुशासित गठबंधन के रूप में पेश करने की कोशिश में है।
बिहार के मतदाताओं की प्राथमिकताएं विविध हैं। कुछ वर्ग सरकार की योजनाओं से संतुष्ट हैं, जबकि अन्य बेरोजगारी और पलायन को लेकर असंतोष जता रहे हैं। लगभग आधे मतदाता 35 वर्ष से कम उम्र के हैं, जिससे युवा मुद्दे इस चुनाव में निर्णायक साबित हो सकते हैं।
पहले चरण की 121 सीटों पर मुकाबला फिलहाल बराबरी का दिख रहा है। एनडीए अपनी पुरानी बढ़त बचाने की कोशिश में है, जबकि महागठबंधन मामूली अंतर को जीत में बदलना चाहता है। मतदाता भागीदारी, युवा प्रभाव और आंतरिक समन्वय इस चरण के परिणाम को निर्धारित करेंगे।
यह चरण केवल चुनाव की शुरुआत नहीं, बल्कि बिहार की राजनीतिक दिशा तय करने वाला मोड़ साबित हो सकता है।
