हाल ही में संपन्न हुए बिहार विधानसभा चुनाव परिणामों के बाद, कांग्रेस विधायक दल के पूर्व नेता शकील अहमद खान ने उन कारकों पर गंभीर सवाल उठाए हैं, जिन्हें उन्होंने “प्रभावित करने वाले तत्व” बताया और जिनके कारण विपक्ष को नुकसान हुआ। यह बयान ऐसे समय में आया है जब सत्तारूढ़ राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) और विपक्ष दोनों ही मतदाताओं के जनादेश को समझने के लिए आंतरिक समीक्षा कर रहे हैं।
खान ने कहा कि विपक्ष की हार के पीछे तीन प्रमुख कारण रहे—कुछ क्षेत्रों में एआईएमआईएम प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी द्वारा की गई कथित साम्प्रदायिक भाषा, मतदान के दौरान स्थानीय स्वयं सहायता समूहों का हस्तक्षेप, और मतदाताओं को लुभाने के लिए कथित नकद प्रलोभन। उनके अनुसार, इन सभी कारकों ने कई जिलों में “मतदान व्यवहार पर स्पष्ट असर” डाला।
खान ने आरोप लगाया, “चुनाव के समय की मैनेजमेंट, चुनाव आयोग का समर्थन और 10,000 रुपये की रिश्वत—ये सभी कारक एनडीए के पक्ष में काम आए।” उन्होंने यह भी कहा कि चुनाव आचरण की विस्तृत और पारदर्शी जांच जरूरी है। उन्होंने जीविका दीदियों की भूमिका पर भी सवाल उठाया, दावा करते हुए कि उनमें से कुछ ने बूथ स्तर पर मतदाताओं को प्रभावित करने की कोशिश की।
यद्यपि इन आरोपों की आधिकारिक पुष्टि नहीं हुई है, कांग्रेस नेता ने चुनाव आयोग से “जमीनी रिपोर्ट को गंभीरता से परखने” की अपील की। उन्होंने कहा, “व्यापक विश्लेषण होना चाहिए, लेकिन चुनाव के बीच मतदाताओं को कैसे लुभाया जा सकता है?” विपक्ष के कुछ हिस्सों को लगता है कि चुनावी माहौल में नीतियों और प्रदर्शन से इतर अन्य प्रभाव सक्रिय थे।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि बिहार के चुनाव परिणाम कई सूक्ष्म कारकों के संयुक्त प्रभाव का परिणाम थे। जहां एनडीए ने मजबूत बहुमत हासिल किया, वहीं महागठबंधन ने कई क्षेत्रों में अच्छा प्रदर्शन किया लेकिन करीबी मुकाबलों में पिछड़ गया। पर्यवेक्षकों के अनुसार, छोटी पार्टियों की मौजूदगी और लक्षित संदेशों ने स्थानीय स्तर पर वोटों का रुझान बदला।
पटना के एक स्वतंत्र राजनीतिक विश्लेषक ने कहा, “बिहार का चुनावी परिदृश्य बेहद जटिल हो चुका है। छोटे-छोटे कारक भी सीमांत सीटों पर परिणाम बदल सकते हैं।” उनके अनुसार, खान द्वारा लगाए गए आरोपों की संस्थागत जांच जरूरी है ताकि जनता का भरोसा कायम रहे।
ओवैसी के भाषणों पर खान की टिप्पणी अल्पसंख्यक बहुल क्षेत्रों में वोट विभाजन की पुरानी बहस को फिर सामने लाती है। ओवैसी इन आरोपों से इनकार करते हुए कहते रहे हैं कि उनकी पार्टी लोकतांत्रिक विकल्प प्रदान करती है, जबकि आलोचकों का मानना है कि तीखी भाषा—चाहे वास्तविक हो या आरोप—मतदाता ध्रुवीकरण को प्रभावित कर सकती है।
खान के नकद प्रलोभन के आरोप उन शिकायतों की ओर संकेत करते हैं जो भारत में चुनावों के दौरान अक्सर सामने आती हैं। चुनाव आयोग पहले कह चुका है कि वह ऐसे मामलों पर सख्ती से कार्रवाई करता है और नागरिकों को शिकायत दर्ज कराने के लिए प्रोत्साहित करता है।
जीविका दीदियों पर उठाए गए सवाल इस चर्चा में एक नया आयाम जोड़ते हैं। लाखों महिलाओं से जुड़ा यह कार्यक्रम ग्रामीण आजीविका का महत्वपूर्ण स्तंभ है। सामान्य रूप से ये समूह राजनीतिक रूप से तटस्थ माने जाते हैं, लेकिन खान का दावा है कि कुछ सदस्यों को “अनौपचारिक रूप से” मतदान के समय सक्रिय किया गया। सरकार की ओर से इस पर कोई औपचारिक प्रतिक्रिया नहीं आई है।
जैसे-जैसे राजनीतिक दल अगले चुनाव चक्र की तैयारी कर रहे हैं, मतदाता प्रभाव, चुनावी नैतिकता और सामुदायिक लामबंदी पर बहस और तेज होने की संभावना है। कांग्रेस इस मुद्दे को विधानसभा में भी उठाने की तैयारी कर रही है।
