
उत्तर प्रदेश के बरेली में “आई लव मोहम्मद” लिखे पोस्टरों को लेकर शुरू हुआ विवाद हिंसक झड़पों तक जा पहुँचा। इस घटना ने एक बार फिर देशभर में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, धार्मिक भावनाओं और कानून-व्यवस्था की सीमाओं को लेकर बहस छेड़ दी है।
इस बहस के केंद्र में हैं एआईएमआईएम प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी, जिन्होंने इसे “दोहरा मापदंड” बताते हुए कड़ी आलोचना की। एक जनसभा को संबोधित करते हुए ओवैसी ने कहा, “कोई कह सकता है ‘आई लव मोदी,’ लेकिन ‘आई लव मोहम्मद’ कहने पर सवाल उठते हैं। राजनीतिक नेता और पैग़ंबर मोहम्मद से प्रेम जताने के लिए अलग-अलग नियम क्यों होने चाहिए?”
मामला तब शुरू हुआ जब बरेली में कुछ समूहों ने “आई लव मोहम्मद” लिखे पोस्टर और बैनर लगाए। यह भावनात्मक अभिव्यक्ति धीरे-धीरे राजनीतिक रंग लेने लगी और विरोध प्रदर्शन शुरू हो गए। कुछ स्थानों पर ये प्रदर्शन हिंसक हो गए, जिसके बाद पुलिस को हस्तक्षेप करना पड़ा। इस दौरान कई लोगों को गिरफ्तार किया गया, जिनमें इंडियन मुस्लिम काउंसिल (IMC) से जुड़े नेता भी शामिल हैं।
स्थिति को नियंत्रण में रखने के लिए प्रशासन ने बरेली में मोबाइल इंटरनेट सेवाएँ निलंबित कर दीं। अधिकारियों का कहना है कि हालात अब काबू में हैं, लेकिन संवेदनशील इलाकों में अतिरिक्त पुलिस बल की तैनाती की गई है।
ओवैसी के बयान ने राजनीतिक हलकों में हलचल मचा दी है। समर्थकों का कहना है कि वे केवल धार्मिक अभिव्यक्ति के अधिकार का बचाव कर रहे हैं, जबकि आलोचक मानते हैं कि वे चुनाव से पहले माहौल को भड़काने की कोशिश कर रहे हैं।
हालाँकि, ओवैसी ने अपने रुख को स्पष्ट करते हुए लोगों से कानून के दायरे में रहने की अपील की। उन्होंने कहा, “हमारी भावनाएँ कभी कानून की सीमा से बाहर नहीं जानी चाहिएं। अगर आप पैग़ंबर से प्रेम करते हैं, तो उसे शांति और संवैधानिक तरीक़े से व्यक्त करें। हिंसा हमारी लड़ाई को कमजोर करती है।
यह घटना भारत में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और साम्प्रदायिक सौहार्द के बीच संतुलन साधने की चुनौतियों को उजागर करती है। विविधताओं वाले समाज में धार्मिक या राजनीतिक नारे अक्सर विवाद का रूप ले लेते हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि ऐसे विवाद प्रायः चुनावी माहौल में ज्यादा भड़कते हैं और सामाजिक ताने-बाने को जटिल बना देते हैं।
एक वरिष्ठ समाजशास्त्री ने कहा, “धार्मिक भावनाएँ भारत में निजी भी हैं और राजनीतिक भी। जो नारा एक समूह को सहज लगता है, वह दूसरे को भड़काऊ लग सकता है। ऐसे में राज्य की ज़िम्मेदारी है कि वह कानून-व्यवस्था बनाए रखते हुए मौलिक अधिकारों की रक्षा करे।”
इस विवाद ने राजनीतिक दलों में तीखी प्रतिक्रियाएँ पैदा कर दी हैं। विपक्षी दलों का आरोप है कि सरकार अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर चयनात्मक रवैया अपनाती है। उनका कहना है कि अगर किसी नेता के लिए प्रेम व्यक्त करना वैध है, तो पैग़ंबर के लिए भी वही नियम लागू होना चाहिए। वहीं, सत्तापक्ष ने पुलिस कार्रवाई का बचाव किया है और इसे शांति बनाए रखने के लिए आवश्यक बताया है।
जैसे-जैसे बरेली में हालात सामान्य होते जा रहे हैं, “आई लव मोहम्मद” पोस्टरों पर छिड़ी बहस जारी है। सामाजिक संगठनों ने शांति और संवाद की अपील की है, ताकि तनाव न बढ़े। वहीं, विधि विशेषज्ञों का कहना है कि शांतिपूर्ण अभिव्यक्ति और अशांति फैलाने वाले कार्यों के बीच स्पष्ट अंतर करना ज़रूरी है।
ओवैसी के लिए यह प्रकरण उनके समर्थकों के बीच उनकी स्थिति को और मजबूत कर सकता है। लेकिन व्यापक राजनीति के लिए यह घटना एक सबक है कि आस्था, राजनीति और सार्वजनिक व्यवस्था जैसे संवेदनशील मुद्दों को अत्यधिक सतर्कता के साथ संभालने की आवश्यकता है।