राजनीतिक रणनीतिकार से नेता बने प्रशांत किशोर एक नए विवाद में घिर गए हैं। खुलासा हुआ है कि वे दो अलग-अलग राज्यों — पश्चिम बंगाल और बिहार — की मतदाता सूची में पंजीकृत हैं। इस दोहरे पंजीकरण ने न केवल राजनीतिक हलचल बढ़ा दी है, बल्कि चुनाव आयोग की प्रक्रिया की पारदर्शिता पर भी सवाल खड़े किए हैं।
जानकारी के अनुसार, प्रशांत किशोर का नाम पहले पश्चिम बंगाल की मतदाता सूची में दर्ज था, जब वे वहां चुनावी रणनीति से जुड़े थे। बाद में, उन्होंने बिहार में मतदाता के रूप में पंजीकरण कराया, जो उनका पैतृक राज्य भी है। उनके करीबी सूत्रों के अनुसार, उन्होंने बंगाल की मतदाता सूची से नाम हटाने के लिए आवेदन किया है, हालांकि अब तक उसका औपचारिक निष्कासन नहीं हुआ है।
भारतीय कानून के अनुसार, कोई भी नागरिक एक समय में केवल एक निर्वाचन क्षेत्र में मतदाता के रूप में पंजीकृत हो सकता है। एक व्यक्ति का नाम दो राज्यों या दो निर्वाचन क्षेत्रों में एक साथ रहना कानूनन अनुचित है। हालांकि, अक्सर यह स्थिति तब बनती है जब लोग स्थान परिवर्तन के बाद पुराने क्षेत्र से नाम कटवाना भूल जाते हैं।
चुनाव प्रक्रिया से जुड़े जानकारों का कहना है कि इस तरह के मामलों में जानबूझकर की गई धोखाधड़ी के बजाय प्रशासनिक लापरवाही की संभावना अधिक होती है। फिर भी, जब मामला किसी चर्चित व्यक्ति से जुड़ा हो, तो यह राजनीतिक और नैतिक प्रश्नों को जन्म देता है।
बिहार में अपनी नई राजनीतिक यात्रा की शुरुआत कर चुके प्रशांत किशोर के लिए यह मामला संवेदनशील समय पर आया है। जन सुराज अभियान के तहत वे प्रदेशभर में जन संवाद कर रहे हैं और आगामी चुनावों में अपनी भूमिका को लेकर चर्चा में हैं। ऐसे में दो राज्यों में नाम दर्ज होना विरोधियों को उन्हें घेरने का मौका दे सकता है।
राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि यह घटना भले ही तकनीकी गलती हो, पर इससे जनविश्वास पर असर पड़ सकता है। विपक्षी दल इसे ‘दोहरे आचरण’ का उदाहरण बताते हुए प्रश्न उठा सकते हैं कि एक नेता जो पारदर्शिता की बात करता है, वह स्वयं दो सूचियों में नाम कैसे रख सकता है।
भारत में मतदाता सूची का अद्यतन एक निरंतर प्रक्रिया है, परंतु शहरीकरण और स्थान परिवर्तन के कारण मतदाताओं का दोहरा पंजीकरण एक आम समस्या बन चुकी है। चुनाव आयोग समय-समय पर विशेष पुनरीक्षण अभियान चलाता है ताकि ऐसे नामों को हटाया जा सके।
कई विशेषज्ञों का मानना है कि डिजिटल सत्यापन और आधार-लिंक्ड प्रक्रिया को मजबूत करने से इस समस्या को काफी हद तक समाप्त किया जा सकता है। इसके अलावा, नागरिकों को भी अपने पंजीकरण की स्थिति जांचने की जिम्मेदारी निभानी चाहिए ताकि मतदाता सूची अधिक सटीक रहे।
प्रशांत किशोर के मामले में अब निगाहें इस बात पर हैं कि चुनाव आयोग क्या कदम उठाता है। यदि दोहरा पंजीकरण साबित होता है, तो पुराना रिकॉर्ड स्वतः रद्द किया जा सकता है। हालांकि, इस घटना से एक बार फिर यह स्पष्ट हो गया है कि मतदाता सूची की सटीकता लोकतंत्र की मजबूती के लिए कितनी आवश्यक है।
चाहे यह तकनीकी त्रुटि हो या प्रशासनिक चूक, इसने राजनीतिक संवाद में ईमानदारी और पारदर्शिता की बहस को फिर से जीवित कर दिया है।
