पटना की सियासत में इस बार भी बदलाव की चर्चा ज़ोरों पर है, लेकिन दिलचस्प बात यह है कि इन बदलाव की आवाज़ों में भी मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को ही उसका असली प्रतिनिधि माना जा रहा है। चाहे विपक्ष कुछ भी कहे, आम मतदाता अब भी उन्हें एक स्थिर और अनुभवी चेहरा मानता है — ऐसा चेहरा जो बिहार की राजनीति में निरंतरता और व्यवस्था का प्रतीक बन चुका है।
हालांकि, जनसरोकारों और युवाओं के बीच बदलाव की भावना मौजूद है, परंतु वह इतनी प्रबल नहीं दिखती कि सत्ता परिवर्तन का बड़ा भाव पैदा कर सके। राजनीतिक पर्यवेक्षकों का मानना है कि बिहार में “एंटी-इन्कम्बेंसी” का भाव है, लेकिन उसके सामने कोई वैकल्पिक लहर या करिश्माई नेता दिखाई नहीं देता।
राजनीतिक रणनीतिकार प्रशांत किशोर की पहल ‘जन सुराज यात्रा’ से लोगों को उम्मीद थी कि वह एक नई राजनीतिक ऊर्जा लेकर आएंगे। मगर अभी तक उनके आंदोलन ने वैसी जनलहर नहीं पकड़ी जैसी अन्ना हज़ारे आंदोलन ने दिल्ली में दिखाई थी। प्रशांत किशोर ने कई जिलों का दौरा किया, युवाओं और किसानों से संवाद स्थापित किया, लेकिन उनका संदेश ज़मीनी स्तर पर व्यापक असर नहीं डाल पा रहा है।
वहीं, राष्ट्रीय जनता दल (राजद) भी अपनी परंपरागत जातीय आधार पर ही केंद्रित दिख रही है। पार्टी के नेता तेजस्वी यादव विकास और रोजगार के मुद्दे उठाने की कोशिश कर रहे हैं, परन्तु मतदाताओं को अब भी उनके अनुभव की कमी खटकती है।
नीतीश कुमार, जिन्होंने कई बार सत्ता में वापसी की है, आज भी एक “विश्वसनीय प्रशासक” के रूप में देखे जाते हैं। हालांकि, उनके लगातार राजनीतिक गठबंधनों में बदलाव — कभी भाजपा के साथ, कभी उसके खिलाफ — ने उनकी छवि को “सियासी रूप बदलने वाले नेता” की तरह बना दिया है। फिर भी, लोगों का मानना है कि नीतीश कुमार बिहार को बेहतर प्रशासन देने में सफल रहे हैं।
पटना विश्वविद्यालय के राजनीति विज्ञान के प्रोफेसर डॉ. अरविंद झा का कहना है,
“बिहार में जनता बदलाव चाहती है, लेकिन उसे भरोसा भी चाहिए। फिलहाल नीतीश कुमार ही ऐसे नेता हैं जो व्यवस्था और अनुभव दोनों का संतुलन बनाए रखते हैं।”
राजनीतिक जानकारों का यह भी मानना है कि बिहार में मतदाता परिवर्तन से ज़्यादा स्थिरता को प्राथमिकता देते हैं। शायद यही कारण है कि नीतीश कुमार के सामने कोई भी नेता या आंदोलन अभी तक “ट्रंप कार्ड” साबित नहीं हुआ है।
आने वाले विधानसभा चुनावों में यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या “बदलाव की आवाज़ें” इस बार नीतीश की स्थिर राजनीति को चुनौती दे पाएंगी या फिर वही बिहार की राजनीति के “परिवर्तन के एजेंट” बने रहेंगे।
