चुनाव आयोग ने देशभर में विशेष मतदाता सूची पुनरीक्षण (Special Intensive Revision – SIR) के अगले चरण से असम को बाहर रखने का निर्णय लिया है। इस फैसले ने न केवल राजनीतिक हलचल पैदा की है बल्कि नागरिकता और मतदाता पहचान प्रक्रिया पर भी नए सिरे से बहस छेड़ दी है।
मुख्य चुनाव आयुक्त ज्ञानेश कुमार ने स्पष्ट किया है कि असम को इस बार की सूची संशोधन प्रक्रिया से इसलिए अलग रखा गया है क्योंकि राज्य में नागरिकता से संबंधित विशेष प्रावधान हैं और सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में चल रही नागरिकता पहचान प्रक्रिया (NRC) अब तक पूरी नहीं हुई है।
उन्होंने कहा, “असम की स्थिति अन्य राज्यों से अलग है। वहां नागरिकता से जुड़े कई मामले न्यायालय की निगरानी में हैं। जब तक प्रक्रिया पूरी नहीं हो जाती, नई मतदाता सूची का व्यापक पुनरीक्षण उचित नहीं होगा।”
असम लंबे समय से नागरिकता और प्रवासन के सवालों से जूझ रहा है। 2019 में प्रकाशित राष्ट्रीय नागरिक पंजी (NRC) ने करीब 19 लाख लोगों को सूची से बाहर कर दिया था। इस पर कई विवाद और न्यायिक प्रक्रियाएँ अब भी लंबित हैं। चुनाव आयोग के अनुसार, जब तक यह प्रक्रिया पूरी तरह समाप्त नहीं होती, राज्य की मतदाता सूची को अद्यतन करना संवेदनशील मामला रहेगा।
NRC और मतदाता सूची के बीच गहरा संबंध है, क्योंकि नागरिकता की पुष्टि के बाद ही किसी व्यक्ति का नाम मतदाता सूची में दर्ज किया जा सकता है। यही कारण है कि असम में मतदाता पहचान का मुद्दा राजनीतिक और सामाजिक दोनों दृष्टियों से संवेदनशील बना हुआ है।
असम कांग्रेस ने इस निर्णय को “राजनीतिक रूप से प्रेरित” बताया है। पार्टी नेताओं का कहना है कि चुनाव आयोग ने यह कदम आगामी विधानसभा चुनावों से पहले भाजपा को लाभ पहुँचाने के लिए उठाया है।
असम प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष ने कहा, “यह फैसला निष्पक्ष नहीं है। नागरिकता प्रक्रिया को बहाना बनाकर मतदाता सूची के अद्यतन को टालना, मतदाताओं को भ्रमित करने की कोशिश है।”
वहीं, भाजपा नेताओं ने इस आरोप को खारिज करते हुए कहा कि आयोग का निर्णय पूरी तरह “संवैधानिक और व्यावहारिक” है। उनका कहना है कि जब तक नागरिकता से जुड़े विवादों पर अदालत की अंतिम मुहर नहीं लगती, तब तक मतदाता सूची में परिवर्तन करना उचित नहीं होगा।
चुनाव आयोग के अधिकारियों ने स्पष्ट किया है कि असम को SIR प्रक्रिया से अस्थायी रूप से बाहर रखा गया है, स्थायी रूप से नहीं। जैसे ही सुप्रीम कोर्ट द्वारा निगरानी में चल रही नागरिकता प्रक्रिया पूरी होगी, राज्य को पुनः विशेष पुनरीक्षण के दायरे में शामिल किया जाएगा।
जानकारों का कहना है कि यह निर्णय एक तरह से संवैधानिक संतुलन बनाए रखने का प्रयास है ताकि नागरिकता की प्रक्रिया पूरी होने से पहले मतदाता सूची में कोई त्रुटि न रह जाए।
असम अगले वर्ष विधानसभा चुनाव की तैयारी कर रहा है। ऐसे में मतदाता सूची की सटीकता और पारदर्शिता पर नजरें टिकी हुई हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि यह फैसला अल्पकालिक रूप से राजनीतिक चर्चा का विषय बनेगा, लेकिन दीर्घकाल में यह प्रक्रिया की पारदर्शिता सुनिश्चित करने में मदद करेगा।
राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि यह कदम आयोग की “सावधानीपूर्ण रणनीति” को दर्शाता है। यदि सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में चल रही NRC प्रक्रिया पूरी होती है, तो आगामी चुनावों में नई मतदाता सूची को आधार बनाया जा सकता है, जिससे विवाद की संभावनाएँ कम होंगी।
असम को विशेष मतदाता सूची पुनरीक्षण से अलग रखने का निर्णय संवेदनशील, परंतु व्यावहारिक माना जा रहा है। यह फैसला नागरिकता विवाद और मतदाता सूची की पारदर्शिता के बीच संतुलन साधने का प्रयास है। हालांकि विपक्ष इसे राजनीतिक रंग देने की कोशिश कर रहा है, पर चुनाव आयोग का रुख यह संकेत देता है कि प्रक्रिया की निष्पक्षता को प्राथमिकता दी जाएगी।
