पटना: कभी नक्सली गतिविधियों का गढ़ माना जाने वाला बिहार का छोटा सा गांव चोरमारा इस बार के चुनाव में इतिहास रच गया। गया, जमुई और रोहतास जिलों की सीमा पर स्थित यह गांव, जहां 2004 में CPI (माओवादी) के गठन के बाद पहली बैठक हुई थी, अब एक “आदर्श मतदान केंद्र” के रूप में पहचाना जा रहा है। यहां पहली बार मतदान बिना किसी सुरक्षा खतरे या स्थानांतरण के सम्पन्न हुआ।
करीब दो दशक पहले चोरमारा गांव माओवादी गतिविधियों का केंद्र था। जंगलों में बैठकें होती थीं, युवाओं की भर्ती होती थी और हिंसा का माहौल कायम था। लेकिन लगातार सुरक्षा अभियानों, प्रशासनिक सुधारों और विकास योजनाओं ने इस क्षेत्र की तस्वीर बदल दी।
आज वही पहाड़ियां, जो कभी भय का प्रतीक थीं, अब लोकतंत्र के उत्सव का केंद्र बन चुकी हैं। सुबह से ही मतदाता मतदान केंद्र पर कतार में खड़े नजर आए। बुजुर्गों और महिलाओं ने बड़ी संख्या में भाग लेकर मतदान प्रतिशत को ऐतिहासिक स्तर पर पहुंचा दिया।
स्थानीय प्राथमिक विद्यालय, जो अब मॉडल बूथ के रूप में तैयार किया गया है, रंगीन सजावट और मतदान जागरूकता बैनरों से सजा हुआ था। ग्रामीणों ने मतदान को एक उत्सव के रूप में मनाया।
स्थानीय शिक्षक रमेश कुमार ने बताया,
“पहले जहां अधिकारी गांव में कदम रखने से डरते थे, आज वही लोग हमारे साथ चाय पी रहे हैं और मतदान प्रक्रिया का हिस्सा बन रहे हैं।”
इस बार चोरमारा को बिहार के उन 768 मतदान केंद्रों में शामिल किया गया, जिन्हें नक्सल खतरे के बावजूद स्थानांतरित करने की आवश्यकता नहीं पड़ी।
गांव के युवा इस बदलाव को अपनी सबसे बड़ी उपलब्धि मानते हैं। सुनीता देवी, जो पहली बार मतदान करने पहुंचीं, ने कहा,
“पहली बार लगता है कि हम देश की लोकतांत्रिक प्रक्रिया का हिस्सा हैं। अब हमारी आवाज़ गोलियों से नहीं, वोट से तय होगी।”
पुलिस और प्रशासन के बीच संवाद और भरोसे ने इस क्षेत्र की सामाजिक स्थिति को भी मजबूत किया है। सामुदायिक कार्यक्रमों ने ग्रामीणों और सुरक्षा बलों के बीच की दूरी को कम किया है।
विशेषज्ञों का मानना है कि चोरमारा का अनुभव अन्य नक्सल प्रभावित इलाकों के लिए प्रेरणास्रोत बन सकता है। विकास और सम्मान के साथ जब जनता को भागीदारी का अवसर दिया जाता है, तो हिंसा की जगह विश्वास ले लेता है।
हालांकि अभी भी कई चुनौतियाँ मौजूद हैं — रोज़गार, सड़क और शिक्षा जैसी बुनियादी सुविधाओं की कमी बनी हुई है। लेकिन चोरमारा का शांतिपूर्ण मतदान इस बात का प्रमाण है कि जब लोग बंदूक से ज़्यादा बैलेट पर भरोसा करने लगते हैं, तभी लोकतंत्र सच्चे अर्थों में जीतता है।
चोरमारा गांव की यह कहानी बिहार ही नहीं, बल्कि पूरे देश के लिए इस बात की मिसाल है कि लोकतंत्र और विकास मिलकर सबसे कठिन इलाकों में भी शांति की नींव रख सकते हैं।
