
सुप्रीम कोर्ट आज सोमवार को वक्फ़ (संशोधन) अधिनियम, 2025 पर अपना अंतरिम आदेश सुनाने जा रहा है। यह मामला राष्ट्रीय स्तर पर चर्चा का विषय बना हुआ है क्योंकि यह वक्फ़ संपत्तियों के प्रबंधन और अल्पसंख्यक अधिकारों बनाम सरकारी निगरानी के संतुलन से जुड़ा है।
अंतरिम आदेश में उन महत्वपूर्ण बिंदुओं पर स्पष्टता आने की संभावना है, जिनमें अदालतों, उपयोग या वसीयतनामे के आधार पर वक्फ़ घोषित संपत्तियों को डिनोटिफाई करने का अधिकार शामिल है। यही प्रावधान सरकार, विपक्ष और धार्मिक संगठनों के बीच सबसे बड़ी बहस का कारण बने हुए हैं।
वक्फ़ (संशोधन) अधिनियम, 2025 को इस साल की शुरुआत में एनडीए सरकार ने पारित किया था। इसका घोषित उद्देश्य वक्फ़ संपत्तियों के प्रबंधन में पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित करना था। सरकारी आंकड़ों के अनुसार, भारत में 8 लाख से अधिक वक्फ़ संपत्तियाँ हैं, जो रेलवे और रक्षा मंत्रालय के बाद देश की सबसे बड़ी संपत्ति धारकों में से एक हैं।
यह कानून 1995 के मूल वक्फ़ अधिनियम के कई प्रावधानों में संशोधन करता है। जहाँ सरकार का कहना है कि ये सुधार संपत्ति प्रबंधन को सुव्यवस्थित करने और दुरुपयोग रोकने के लिए आवश्यक हैं, वहीं आलोचकों का आरोप है कि यह कानून अनुच्छेद 25 से 30 तक दिए गए अल्पसंख्यक अधिकारों को कमजोर करता है।
कांग्रेस समेत कई विपक्षी दलों ने चिंता जताई है कि इस संशोधन से राज्य प्राधिकरणों को अत्यधिक शक्तियाँ मिल जाती हैं, जिससे वक्फ़ बोर्डों की स्वायत्तता प्रभावित हो सकती है। मुस्लिम संगठनों ने भी इस अधिनियम को चुनौती दी है, यह कहते हुए कि यह समुदाय के अपने दान और संपत्तियों के प्रबंधन के अधिकार में हस्तक्षेप करता है।
सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ताओं की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता महमूद प्राचा ने दलील दी थी कि, “राज्य धार्मिक दानों पर एकतरफा नियंत्रण नहीं कर सकता, क्योंकि यह संविधान में दिए गए अल्पसंख्यक संरक्षण की भावना का उल्लंघन है।”
वहीं, सरकार की ओर से पेश हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने अधिनियम का बचाव करते हुए कहा कि यह “वक्फ़ संपत्तियों को अतिक्रमण और भ्रष्टाचार से बचाने तथा इन्हें वास्तविक सामुदायिक कल्याण में इस्तेमाल करने के लिए लाया गया है।”
22 मई को दलीलें पूरी होने के बाद सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने आदेश सुरक्षित रख लिया था। अब यह अंतरिम आदेश यह स्पष्ट करेगा कि अंतिम फैसला आने तक यह कानून किस तरह लागू होगा।
संवैधानिक मामलों के विशेषज्ञ प्रो. फैजान मुस्तफा का कहना है कि “सुप्रीम कोर्ट का आदेश एक संतुलनकारी कदम होगा। इसमें अल्पसंख्यक अधिकारों की रक्षा के साथ-साथ वक्फ़ संपत्तियों की जवाबदेही भी सुनिश्चित करनी होगी, क्योंकि ये संपत्तियाँ सार्वजनिक हित के लिए होती हैं।”
इस विवाद ने राजनीतिक रंग भी ले लिया है। सरकार इसे सुधारोन्मुखी कदम बता रही है, जबकि विपक्ष का आरोप है कि यह समुदाय की संस्थाओं को कमजोर करने की कोशिश है।
इस बीच, विभिन्न राज्यों के वक्फ़ बोर्डों ने सुप्रीम कोर्ट से उनकी स्वायत्तता की रक्षा करने की अपील की है और कहा है कि वक्फ़ संपत्तियों के संबंध में निर्णय समुदाय के भीतर ही होने चाहिए।
अब पूरे देश की निगाहें सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश पर टिकी हैं, जो आने वाले समय में अल्पसंख्यक अधिकारों, संपत्ति प्रबंधन और धार्मिक दान-संपत्तियों पर सरकार की भूमिका को परिभाषित कर सकता है।