बीजेपी ने कांग्रेस पर साधा निशाना, ‘अहिंदा’ वोट बैंक में दरार की आशंका
बेंगलुरु, 14 अगस्त: कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्दारमैया को उस समय बड़ा राजनीतिक झटका लगा जब वल्मीकि समुदाय से आने वाले सहकारिता मंत्री के.एन. राजन्ना को पद से हटाने का फैसला लिया गया। पार्टी हाईकमान के निर्देश पर की गई इस कार्रवाई की वजह बनी, राजन्ना की सार्वजनिक तौर पर “वोट चोरी” को लेकर की गई तीखी आलोचना। इससे पहले, पिछले वर्ष बी. नागेंद्र को आदिवासी कल्याण कोष में कथित धन गबन के आरोपों के चलते पद छोड़ना पड़ा था। दो साल में दो एसटी मंत्रियों का जाना, कांग्रेस के ‘अहिंदा’ (अल्पसंख्यक, पिछड़ा वर्ग और दलित) वोट बैंक में असंतोष की लहर पैदा कर रहा है।
घटनाक्रम की पृष्ठभूमि
बी. नागेंद्र के इस्तीफे के बाद भी पार्टी वल्मीकि समुदाय की नाराज़गी शांत नहीं कर पाई थी। इस बीच, के.एन. राजन्ना की बर्खास्तगी ने एक बार फिर उस असंतोष को हवा दे दी है। वल्मीकि समाज का मानना है कि उनके नेताओं को निशाना बनाया जा रहा है, जिससे कांग्रेस का पारंपरिक समर्थन आधार कमजोर हो सकता है।
विधानसभा में सियासी असर
विश्लेषकों का कहना है कि वल्मीकि समुदाय का समर्थन खोना, कांग्रेस के लिए चुनावी समीकरण बिगाड़ सकता है। ‘अहिंदा’ गठजोड़ में इस समुदाय की अहम भूमिका है। बीजेपी ने मौके को भांपते हुए, हाल के दिनों में वल्मीकि समाज के प्रमुख चेहरों से संपर्क बढ़ाया है और उनके मुद्दों को राजनीतिक मंच पर उठाने की रणनीति अपनाई है।
विपक्षी दलों की प्रतिक्रिया
बीजेपी ने इस बर्खास्तगी को कांग्रेस की “आंतरिक कलह और नेतृत्व की असहिष्णुता” करार दिया। पार्टी का कहना है कि कांग्रेस अपने नेताओं की आवाज़ दबा रही है और जनजातीय समुदाय के साथ अन्याय कर रही है। वहीं, जेडीएस ने भी इसे कांग्रेस की “कमजोर संगठन क्षमता” का परिणाम बताया।
निष्कर्ष
सिद्दारमैया के सामने अब सबसे बड़ी चुनौती वल्मीकि समाज का भरोसा फिर से जीतने की है। अगर यह असंतोष कायम रहा, तो आने वाले विधानसभा और लोकसभा चुनावों में कांग्रेस को भारी नुकसान उठाना पड़ सकता है। राजनीतिक जानकार मानते हैं कि यह विवाद सिर्फ एक मंत्री की बर्खास्तगी भर नहीं, बल्कि सामाजिक–राजनीतिक समीकरणों को हिला देने वाला मुद्दा है।
