
सत्तारूढ़ राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) के आठ सदस्यीय उच्च-स्तरीय प्रतिनिधिमंडल ने आज तमिलनाडु के करूर का दौरा किया। इस प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व हेमा मालिनी, जो मथुरा से सांसद और अभिनेत्री हैं, कर रही हैं। यह दौरा अभिनेता-राजनेता विजय की रैली में हुई भगदड़ की घटना के बाद ज़मीनी हालात का जायजा लेने के लिए किया गया है, जिसमें कम से कम 41 लोगों की जान चली गई थी। इस दुखद घटना ने देश भर का राजनीतिक ध्यान आकर्षित किया है और जवाबदेही तथा भीड़ सुरक्षा प्रोटोकॉल को लेकर उच्च-दांव वाले राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप को जन्म दिया है।
भाजपा प्रमुख जेपी नड्डा द्वारा गठित इस प्रतिनिधिमंडल में केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर, भाजपा सांसद ब्रज लाल और अपराजिता सारंगी, राष्ट्रीय महिला आयोग की अध्यक्ष रेखा शर्मा, शिवसेना के श्रीकांत शिंदे, और तेलुगु देशम पार्टी (टीडीपी) के पुट्टा महेश कुमार शामिल हैं। यह प्रतिनिधिमंडल शनिवार शाम हुई त्रासदी के कारणों का आकलन करने और प्रभावित परिवारों से मुलाकात करने के बाद एक विस्तृत रिपोर्ट सौंपेगा।
एक रैली का त्रासदीपूर्ण अंत
यह भगदड़ करूर के वेलुसामीपुरम में अभिनेता विजय की नवगठित राजनीतिक पार्टी, तमिलगा वेट्री कज़गम (टीवीके), की पहली बड़ी जनसभा के दौरान हुई। विजय ने इस साल फरवरी में अपनी पार्टी की शुरुआत की थी और इसका लक्ष्य 2026 के तमिलनाडु विधानसभा चुनावों में उतरना है। प्रत्यक्षदर्शियों के बयानों और आधिकारिक रिपोर्टों के अनुसार, भीड़ स्वीकृत 10,000 लोगों की सीमा से कहीं अधिक, लगभग 50,000 तक पहुंच गई थी। भगदड़ की वजह अत्यधिक भीड़, एक अस्थायी शेड के गिरने जैसी बुनियादी ढांचे की विफलता, और लोकप्रिय अभिनेता के आगमन से जुड़ी सामान्य बेचैनी बताई जा रही है। इस घटना में 41 लोग, जिनमें महिलाएं और बच्चे शामिल हैं, मारे गए और 60 से अधिक घायल हुए।
एनडीए टीम के करूर पहुंचने से पहले, केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने केंद्रीय मंत्री एल मुरुगन और तमिलनाडु भाजपा प्रमुख नैनार नागेंद्रन के साथ सोमवार को मृतकों के परिवारों से मुलाकात की थी। नुकसान पर गहरा दुख व्यक्त करते हुए, मंत्री सीतारमण ने पत्रकारों से कहा, “मैं उनके दुख का वर्णन नहीं कर सकती। मैं टूट गई हूं… मैं शोक संतप्त लोगों से बात करने या उन्हें सांत्वना देने में असमर्थ हूं,” उन्होंने इस आपदा की मानवीय लागत को उजागर किया।
कानूनी पेच और राजनीतिक प्रति-दावे
इस घटना ने तुरंत कानूनी कार्रवाई और एक तीखे राजनीतिक विवाद को जन्म दे दिया है। करूर टाउन पुलिस ने टीवीके के जिला सचिव माथियाझगन—जिन्हें बाद में गिरफ्तार कर लिया गया—के साथ-साथ टीवीके के राज्य महासचिव बस्सी आनंद और उप महासचिव निर्मल कुमार पर मामला दर्ज किया है। उन पर भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस) की गंभीर धाराओं, जिनमें धारा 105 (गैर इरादतन हत्या जो हत्या की कोटि में न आती हो) शामिल है, के तहत आरोप लगाए गए हैं।
इसके विपरीत, टीवीके ने यह गंभीर आरोप लगाया है कि भगदड़ सत्तारूढ़ द्रविड़ मुनेत्र कज़गम (डीएमके) और कुछ पुलिस अधिकारियों द्वारा रची गई राजनीतिक साज़िश का हिस्सा थी। टीवीके नेताओं ने मद्रास उच्च न्यायालय की मदुरै पीठ का रुख किया है, जिसमें उन्होंने जांच को केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) या एक विशेष जांच दल (एसआईटी) को सौंपने की मांग की है, उनका दावा है कि राज्य पुलिस के तहत निष्पक्ष जांच असंभव है। इस बीच, तमिलनाडु सरकार ने घटना की जांच के लिए सेवानिवृत्त उच्च न्यायालय न्यायाधीश न्यायमूर्ति अरुणा जगदीसन की अध्यक्षता में एक सदस्यीय जांच आयोग का गठन किया है और मृतकों के परिजनों के लिए ₹10 लाख के मुआवज़े की घोषणा की है।
भीड़ प्रबंधन की प्रणालीगत विफलता
यह त्रासदी भारत भर में बड़े पैमाने पर होने वाली राजनीतिक और सार्वजनिक सभाओं में अपर्याप्त भीड़ प्रबंधन के आवर्ती मुद्दे को भी सामने लाती है। टीवीके की पहली ही रैली में इतनी बड़ी संख्या में भीड़ जुटना तमिलनाडु की राजनीति के अत्यधिक प्रतिस्पर्धी और व्यक्तित्व-केंद्रित स्वरूप को रेखांकित करता है, जहां फिल्म स्टार की लोकप्रियता अक्सर स्थानीय प्रशासनिक और सुरक्षा व्यवस्था को भारी पड़ जाती है।
इस तरह की आपदाओं की प्रणालीगत प्रकृति पर प्रतिक्रिया देते हुए, कांग्रेस सांसद और प्रसिद्ध सार्वजनिक व्यक्ति शशि थरूर ने संरचनात्मक खामियों पर प्रकाश डाला। थरूर ने कहा, “हमारे देश में भीड़ प्रबंधन के साथ कुछ गलत है। हर साल, कोई न कोई घटना होती दिखती है… मैं केंद्र सरकार और सभी राज्य सरकारों से ईमानदारी से अपील करता हूं कि वे सभी बड़ी भीड़ के लिए, किसी भी परिस्थिति में, बहुत सख्त प्रक्रियाओं के एक सेट पर सहमत हों, ताकि हम अपने प्रियजनों को इन भयानक भगदड़ों में खोने के दुख और पीड़ा से अनावश्यक रूप से पीड़ित न हों,” उन्होंने राष्ट्रीय सुरक्षा प्रोटोकॉल की वकालत की।
त्रासदी के बाद, तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने जोर दिया कि राजनीतिक दलों और सार्वजनिक संगठनों को ऐसी बड़ी सार्वजनिक सभाओं को जिम्मेदारी से आयोजित करने के लिए सख्त नियम बनाने और उनका पालन करने की आवश्यकता है, ताकि ऐसी त्रासदियों को दोबारा होने से रोका जा सके। दोहरी जांच—सरकार द्वारा नियुक्त आयोग और सीबीआई जांच के लिए बढ़ते दबाव—ही जवाबदेही तय करेंगी, लेकिन करूर भगदड़ देश भर में व्यापक और समान भीड़ सुरक्षा प्रवर्तन की तत्काल आवश्यकता की एक गंभीर और तात्कालिक याद दिलाती है।