
ठाणे के मीरा रोड में स्थित एक 30 साल पुराने हाउसिंग कॉम्प्लेक्स ने स्थायी शहरी जीवन का एक उत्कृष्ट उदाहरण पेश किया है, यह साबित करते हुए कि उम्र पर्यावरणीय नवाचार में कोई बाधा नहीं है। 280 से अधिक परिवारों वाले नव युवान हाउसिंग सोसाइटी ने अपने कॉमन बिजली बिल को 52,000 रुपये से घटाकर मात्र 18,000 रुपये प्रति माह कर दिया है और एक रेट्रोफिटेड आवासीय इमारत के लिए प्रतिष्ठित ‘एज एडवांस्ड’ (EDGE Advanced) ग्रीन बिल्डिंग सर्टिफिकेशन प्राप्त करने वाली एशिया की पहली सोसाइटी होने का गौरव हासिल किया है।
यह प्रमाणीकरण, जो इस साल मार्च में ‘एक्सीलेंस इन डिज़ाइन फॉर ग्रेटर एफ़िशिएंसीज़’ (EDGE) द्वारा प्रदान किया गया – जो विश्व बैंक समूह के अंतर्राष्ट्रीय वित्त निगम द्वारा विकसित एक वैश्विक मानक है – ऊर्जा और पानी की खपत को कम करने तथा कार्बन उत्सर्जन को घटाने में सोसाइटी की उत्कृष्ट उपलब्धियों को मान्यता देता है।
रेट्रोफिटिंग परियोजना के ठोस परिणाम प्रभावशाली हैं। सोसाइटी ने ऊर्जा में 41% की बचत, पानी के उपयोग में 35% की कमी, और सामग्री दक्षता में 59% की वृद्धि दर्ज की है। महत्वपूर्ण रूप से, इन सुधारों से परिचालन कार्बन उत्सर्जन में प्रति वर्ष लगभग 233 टन की कमी आई है। निवासियों के लिए, सबसे तत्काल लाभ वित्तीय रहा है। प्रबंध समिति के एक सदस्य, करोवलिया ने पुष्टि की, “हमारा बिजली का बिल, जो पहले लगभग 52,000 रुपये था, अब 18,000 रुपये है।”
यह परिवर्तन आगा खान एजेंसी फॉर हैबिटैट (AKAH), भारत द्वारा एक पायलट परियोजना के रूप में डिजाइन और कार्यान्वित किए गए व्यावहारिक, कम लागत वाले हस्तक्षेपों की एक श्रृंखला के माध्यम से हासिल किया गया। प्रमुख परिवर्तनों में से एक सीढ़ियों और लिफ्ट लॉबी जैसे सामान्य क्षेत्रों में 150 मोशन सेंसर-आधारित डिमेबल ट्यूब लाइटों की स्थापना थी। ये लाइटें जब क्षेत्र खाली होते हैं तो निम्न स्तर पर काम करती हैं और गतिविधि का पता चलने पर पूरी चमक पर स्विच हो जाती हैं, जिससे ऊर्जा की बर्बादी को कम करते हुए सुरक्षा सुनिश्चित होती है। अन्य उपायों में कम प्रवाह वाले पानी के फिक्स्चर की स्थापना और एक बेहतर अपशिष्ट प्रबंधन प्रणाली शामिल होने की संभावना है।
पृष्ठभूमि: रेट्रोफिटिंग का महत्व भारत के शहरों में लाखों पुरानी इमारतें हैं जो आधुनिक ऊर्जा दक्षता मानकों के लागू होने से पहले बनाई गई थीं। ये संरचनाएं उच्च ऊर्जा खपत और कार्बन उत्सर्जन में महत्वपूर्ण योगदान करती हैं। नव युवान परियोजना जलवायु समाधान के रूप में रेट्रोफिटिंग – मौजूदा इमारतों को अपग्रेड करने – की immense क्षमता पर प्रकाश डालती है। अमेरिका स्थित रॉकी माउंटेन इंस्टीट्यूट (RMI) के एक अध्ययन के अनुसार, एक मौजूदा इमारत को रेट्रोफिट करने से एक नई इमारत बनाने की तुलना में 50-70% कम कार्बन उत्सर्जन होता है, मुख्य रूप से सीमेंट और स्टील के कार्बन-गहन निर्माण से बचकर।
शहरी नियोजन विशेषज्ञ मानते हैं कि यह परियोजना अन्य शहरों के लिए एक अनुकरणीय खाका प्रस्तुत करती है। मुंबई स्थित एक वास्तुकार और स्थिरता सलाहकार, अंजलि जोशी कहती हैं, “नव युवान सोसाइटी परियोजना शहरी भारत के लिए एक शक्तिशाली और अनुकरणीय मॉडल है। यह दर्शाता है कि महत्वपूर्ण पर्यावरणीय और आर्थिक लाभ प्राप्त करने के लिए हमेशा बड़े, पूंजी-गहन नए प्रोजेक्ट की आवश्यकता नहीं होती है। मौजूदा हाउसिंग स्टॉक में लक्षित, बुद्धिमान रेट्रोफिट पर ध्यान केंद्रित करके, हम सामुदायिक स्तर पर ऊर्जा संरक्षण की immense क्षमता को अनलॉक कर सकते हैं।”
AKAH, भारत की सीईओ, प्रेरणा लांगा ने इस परियोजना को आवासीय क्षेत्र में जलवायु कार्य योजनाओं के लिए एक महत्वपूर्ण “प्रूफ-ऑफ-कॉन्सेप्ट” के रूप में वर्णित किया। उन्होंने कहा, “यह दिखाता है कि कैसे व्यावहारिक, कम लागत वाले हस्तक्षेप सार्थक मापने योग्य परिणाम दे सकते हैं और नए निर्माण की आवश्यकता के बिना लचीलापन में सुधार कर सकते हैं।” लांगा ने कहा कि इन्हीं सिद्धांतों को स्कूलों, वाणिज्यिक परिसरों और संस्थागत भवनों में भी परिचालन लागत को कम करने और स्वस्थ वातावरण बनाने के लिए लागू किया जा सकता है।
जैसे-जैसे भारतीय शहरों का विस्तार जारी है, नव युवान हाउसिंग सोसाइटी की सफलता की कहानी एक शक्तिशाली सबक प्रदान करती है: एक स्थायी भविष्य का मार्ग न केवल नई हरित संरचनाएं बनाने में है, बल्कि हमारे पास पहले से मौजूद इमारतों को सोच-समझकर बदलने में भी है।