तिरुवनंतपुरम — भारतीय राजनीति में क्षेत्रीय समीकरणों की जटिलता एक बार फिर सामने आई है। पश्चिम बंगाल में एक-दूसरे के प्रमुख राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी रहे तृणमूल कांग्रेस (TMC) और कांग्रेस अब केरल में एक ही मंच पर दिखाई दे रहे हैं। कांग्रेस-नेतृत्व वाली यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट (UDF) ने तृणमूल कांग्रेस को “एसोसिएट सदस्य” का दर्जा देने की घोषणा की है। इस कदम को केरल की राजनीति में विपक्षी एकजुटता बढ़ाने की दिशा में महत्वपूर्ण माना जा रहा है।
UDF का यह फैसला ऐसे समय पर आया है जब राज्य में आगामी विधानसभा चुनावों की तैयारियां शुरू हो चुकी हैं। कांग्रेस और उसके पारंपरिक सहयोगियों के लिए मौजूदा वाम लोकतांत्रिक मोर्चा (LDF) सरकार को चुनौती देना आसान नहीं रहा है। ऐसे में UDF का दायरा बढ़ाने और विभिन्न सामाजिक व क्षेत्रीय समूहों को साथ जोड़ने की रणनीति के तहत नए दलों को एसोसिएट सदस्य बनाया गया है।
तृणमूल कांग्रेस के अलावा कुछ अन्य छोटे और क्षेत्रीय दलों को भी UDF के साथ जोड़ा गया है। हालांकि, यह सदस्यता पूर्ण गठबंधन भागीदारी नहीं है। एसोसिएट सदस्य के रूप में ये दल UDF के साथ चुनावी तालमेल और समर्थन दे सकते हैं, लेकिन सीट बंटवारे और रणनीतिक निर्णयों में उनकी भूमिका सीमित रहेगी। UDF नेतृत्व का कहना है कि यह व्यवस्था गठबंधन को लचीला बनाए रखने और व्यापक समर्थन जुटाने के लिए की गई है।
इस घटनाक्रम के बीच केरल कमराज कांग्रेस को लेकर राजनीतिक भ्रम की स्थिति भी पैदा हो गई। UDF की ओर से यह संकेत दिया गया कि कमराज कांग्रेस को भी एसोसिएट सदस्य बनाया गया है, लेकिन पार्टी नेतृत्व ने बाद में स्पष्ट किया कि वह अब भी भारतीय जनता पार्टी (BJP)-नेतृत्व वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) का हिस्सा है। कमराज कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता ने कहा, “हमने UDF में शामिल होने का कोई औपचारिक निर्णय नहीं लिया है। हमारी राजनीतिक प्रतिबद्धताएं फिलहाल NDA के साथ हैं।” इस बयान ने यह दिखा दिया कि केरल में गठबंधन राजनीति कितनी संवेदनशील और जटिल है।
पृष्ठभूमि में देखें तो केरल की राजनीति लंबे समय से दो प्रमुख मोर्चों — UDF और LDF — के बीच घूमती रही है। राज्य में तीसरे मोर्चे या बाहरी दलों की भूमिका सीमित रही है, लेकिन हाल के वर्षों में राष्ट्रीय और क्षेत्रीय दलों के बीच नए समीकरण उभरते दिख रहे हैं। तृणमूल कांग्रेस का UDF से जुड़ना इसी बदलते राजनीतिक परिदृश्य का संकेत माना जा रहा है।
दिलचस्प बात यह है कि पश्चिम बंगाल में TMC और कांग्रेस एक-दूसरे के खिलाफ सीधी लड़ाई लड़ते रहे हैं। दोनों दलों के बीच वहां तीखा राजनीतिक संघर्ष रहा है, लेकिन केरल में परिस्थितियां अलग हैं। यहां साझा लक्ष्य LDF को सत्ता से बाहर करना है। इसी कारण वैचारिक मतभेदों के बावजूद दोनों दल एक सीमित साझेदारी के लिए सहमत हुए हैं।
UDF नेतृत्व ने इस फैसले का बचाव करते हुए कहा कि यह कदम पूरी तरह व्यावहारिक राजनीति के तहत उठाया गया है। विपक्ष के नेता और UDF के एक वरिष्ठ पदाधिकारी ने कहा, “हमने बिना किसी शर्त के समर्थन देने वाले दलों के प्रस्ताव पर विचार किया और उन्हें एसोसिएट सदस्य के रूप में शामिल करने का निर्णय लिया। हमारा उद्देश्य लोकतांत्रिक मूल्यों की रक्षा और राज्य में एक मजबूत विकल्प प्रस्तुत करना है।”
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह विस्तार UDF को कुछ क्षेत्रों में लाभ पहुंचा सकता है, खासकर उन इलाकों में जहां छोटे दलों और स्थानीय नेताओं का प्रभाव है। हालांकि, यह भी कहा जा रहा है कि केवल गठबंधन विस्तार से चुनावी सफलता सुनिश्चित नहीं होती। जमीनी संगठन, स्थानीय मुद्दे और नेतृत्व की विश्वसनीयता भी उतनी ही अहम भूमिका निभाते हैं।
आने वाले महीनों में यह स्पष्ट होगा कि TMC और अन्य एसोसिएट सदस्यों की भागीदारी UDF के लिए कितनी प्रभावी साबित होती है। वहीं, NDA और LDF भी इस नए समीकरण पर नजर बनाए हुए हैं। कुल मिलाकर, बंगाल में प्रतिद्वंद्विता और केरल में साझेदारी का यह उदाहरण भारतीय राजनीति में क्षेत्रीय जरूरतों के अनुसार बदलते गठबंधनों की एक और मिसाल बन गया है।
