नई दिल्ली — संसद द्वारा ग्रामीण रोजगार और आजीविका मिशन गारंटी (जी राम जी) बिल के पारित होने के बाद भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने इसे एक बड़े नीतिगत सुधार के रूप में प्रस्तुत किया है, वहीं कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों ने इसे ग्रामीण भारत के लिए गंभीर झटका बताते हुए आगामी विधानसभा चुनावों में एक प्रमुख राजनीतिक मुद्दा बनाने के संकेत दिए हैं। यह विधेयक लंबे समय से लागू महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (MGNREGA) का स्थान लेता है, जिसे संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (UPA) सरकार के कार्यकाल की एक अहम सामाजिक कल्याण योजना माना जाता रहा है।
भाजपा का दावा है कि जी राम जी बिल ग्रामीण रोजगार व्यवस्था को अधिक प्रभावी, पारदर्शी और भविष्य-उन्मुख बनाएगा। सरकार के अनुसार, नई योजना के तहत ग्रामीण परिवारों को अधिक दिनों का रोजगार, कौशल-आधारित कार्य के अवसर और तकनीक-आधारित निगरानी प्रणाली उपलब्ध कराई जाएगी। सत्ताधारी दल का मानना है कि यह बदलाव केवल रोजगार तक सीमित नहीं है, बल्कि ग्रामीण बुनियादी ढांचे, आजीविका सृजन और आत्मनिर्भर गांवों की दिशा में एक निर्णायक कदम है।
ग्रामीण विकास मंत्रालय से जुड़े एक वरिष्ठ नेता ने संसद में कहा,
“यह विधेयक गरीबों के अधिकारों को कमजोर नहीं करता, बल्कि उन्हें नई आर्थिक वास्तविकताओं के अनुरूप सशक्त बनाता है।”
भाजपा नेताओं का तर्क है कि पिछले वर्षों में MGNREGA को लेकर भ्रष्टाचार, फर्जी जॉब कार्ड और भुगतान में देरी जैसी समस्याएं सामने आईं, जिनका समाधान नई प्रणाली के माध्यम से किया जा सकता है।
इसके विपरीत, कांग्रेस ने जी राम जी बिल को “अधिकार आधारित योजना से पीछे हटने” का प्रयास बताया है। पार्टी का आरोप है कि यह विधेयक रोजगार की कानूनी गारंटी को कमजोर करता है और केंद्र सरकार की जिम्मेदारी को राज्यों पर स्थानांतरित करता है। कांग्रेस नेताओं का कहना है कि महात्मा गांधी का नाम हटाया जाना केवल प्रतीकात्मक बदलाव नहीं है, बल्कि यह उस विचारधारा से दूरी को दर्शाता है, जिसमें रोजगार को अधिकार के रूप में देखा गया था।
कांग्रेस की एक वरिष्ठ नेता ने कहा,
“यह बिल विकास के नाम पर ग्रामीण गरीबों से उनका सुरक्षा कवच छीनने जैसा है।”
पार्टी का मानना है कि ‘वोट चोरी’ जैसे आरोपों से आगे बढ़कर अब उसे ग्रामीण रोजगार, महंगाई और संघीय ढांचे जैसे मुद्दों पर सरकार को घेरने का ठोस अवसर मिला है।
सिर्फ कांग्रेस ही नहीं, वाम दलों और कुछ क्षेत्रीय पार्टियों ने भी इस विधेयक पर चिंता जताई है। उनका कहना है कि राज्यों पर बढ़ता वित्तीय बोझ और रोजगार की अनिश्चितता ग्रामीण अर्थव्यवस्था को प्रभावित कर सकती है। कई मुख्यमंत्रियों ने आशंका जताई है कि नई लागत-साझेदारी व्यवस्था से राज्य सरकारों के बजट पर अतिरिक्त दबाव पड़ेगा।
MGNREGA को वर्ष 2005 में लागू किया गया था, जिसका उद्देश्य ग्रामीण परिवारों को प्रति वर्ष न्यूनतम 100 दिनों का मजदूरी-आधारित रोजगार उपलब्ध कराना था। यह योजना ग्रामीण संकट के समय एक सामाजिक सुरक्षा कवच के रूप में उभरी और लाखों परिवारों के लिए आय का स्थिर स्रोत बनी। समय के साथ यह योजना राजनीतिक बहस का केंद्र भी रही, लेकिन इसकी भूमिका से इनकार नहीं किया जा सकता।
जी राम जी बिल के माध्यम से सरकार का दावा है कि ग्रामीण रोजगार नीति को वर्तमान आर्थिक जरूरतों और तकनीकी प्रगति के अनुरूप ढाला गया है। हालांकि आलोचकों का कहना है कि किसी भी सुधार में अधिकार-आधारित ढांचे को कमजोर नहीं किया जाना चाहिए।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह विधेयक आने वाले महीनों में चुनावी विमर्श का अहम हिस्सा बनेगा। भाजपा इसे “UPA युग की नीतियों से निर्णायक अलगाव” के रूप में पेश कर रही है, जबकि कांग्रेस इसे ग्रामीण भारत की आवाज़ बनाकर चुनावी मैदान में उतरने की तैयारी में है। ऐसे में जी राम जी बिल केवल एक नीतिगत बदलाव नहीं, बल्कि एक बड़े राजनीतिक संघर्ष का प्रतीक बनता जा रहा है।
