नई दिल्ली: तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) के सांसदों ने प्रस्तावित विकसित भारत–गारंटी फॉर रोजगार एवं आजीविका मिशन (ग्रामीण) विधेयक, जिसे आमतौर पर जी राम जी बिल कहा जा रहा है, के विरोध में संसद परिसर में रातभर धरना प्रदर्शन किया। यह विरोध महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) को नए विधेयक से प्रतिस्थापित किए जाने के खिलाफ था। सांसदों ने पुराने संसद भवन की सीढ़ियों पर कंबल, टोपी और बैनरों के साथ शांतिपूर्ण ढंग से विरोध दर्ज कराया।
सर्द मौसम और बढ़ते स्मॉग के बीच टीएमसी सांसदों ने पूरी रात संसद परिसर में बिताई। प्रदर्शन स्थल पर महात्मा गांधी और रवीन्द्रनाथ टैगोर के चित्र लगाए गए, जिन्हें पार्टी ने प्रतीकात्मक रूप से सामाजिक न्याय और श्रम अधिकारों से जोड़ा। सांसदों ने घर से लाया गया भोजन किया और नारेबाजी के बजाय मौन और प्रतीकात्मक विरोध का रास्ता अपनाया।
टीएमसी नेताओं का कहना है कि नया विधेयक मनरेगा की मूल भावना को कमजोर करता है। पार्टी के अनुसार, मनरेगा केवल एक रोजगार योजना नहीं बल्कि ग्रामीण गरीबों के लिए कानूनी अधिकार था, जिसने लाखों परिवारों को न्यूनतम आय सुरक्षा प्रदान की। उनका आरोप है कि नए कानून में रोजगार की गारंटी को अधिकार के बजाय प्रशासनिक योजना के रूप में प्रस्तुत किया जा रहा है।
टीएमसी की एक वरिष्ठ सांसद ने कहा,
“मनरेगा ने ग्रामीण भारत को सम्मान और सुरक्षा दी। इस विधेयक के जरिए उस अधिकार को धीरे-धीरे समाप्त करने की कोशिश की जा रही है। हमारा विरोध राजनीति नहीं, बल्कि जनहित से जुड़ा है।”
धरने में बाद में अन्य विपक्षी दलों के सांसद भी शामिल हुए, जिससे यह प्रदर्शन व्यापक विपक्षी असहमति का संकेत बन गया। विपक्ष का आरोप है कि विधेयक को बिना पर्याप्त बहस और संसदीय समीक्षा के पारित करने की प्रक्रिया अपनाई गई, जो लोकतांत्रिक परंपराओं के विपरीत है। कई सांसदों ने मांग की कि विधेयक को संसदीय समिति के पास भेजा जाए ताकि इसके सामाजिक और आर्थिक प्रभावों की गहन जांच हो सके।
विपक्षी नेताओं का यह भी कहना है कि महात्मा गांधी का नाम हटाया जाना केवल प्रतीकात्मक बदलाव नहीं है, बल्कि यह उस विचारधारा से दूरी का संकेत है, जिसमें श्रम, समानता और अधिकारों को केंद्रीय स्थान दिया गया था। उनका दावा है कि ग्रामीण रोजगार जैसे संवेदनशील विषय पर सहमति और व्यापक चर्चा आवश्यक है।
सरकार ने इन आरोपों को खारिज करते हुए कहा है कि नया विधेयक ग्रामीण विकास को अधिक प्रभावी और आधुनिक बनाने के उद्देश्य से लाया गया है। सरकार के अनुसार, यह योजना केवल रोजगार तक सीमित नहीं है, बल्कि कौशल विकास, आजीविका सृजन और आत्मनिर्भर ग्रामीण अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देगी।
ग्रामीण विकास मंत्रालय से जुड़े एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा,
“यह विधेयक ग्रामीण भारत को भविष्य के लिए तैयार करने की दिशा में एक कदम है। रोजगार के साथ-साथ टिकाऊ आजीविका पर भी ध्यान दिया गया है।”
मनरेगा अधिनियम वर्ष 2005 में लागू हुआ था और इसे स्वतंत्र भारत की सबसे बड़ी सामाजिक सुरक्षा योजनाओं में गिना जाता है। इस कानून ने ग्रामीण परिवारों को प्रति वर्ष न्यूनतम 100 दिनों के रोजगार की गारंटी दी और पारदर्शिता के लिए सामाजिक अंकेक्षण जैसे प्रावधान जोड़े। वर्षों में यह योजना ग्रामीण मजदूरी, पलायन में कमी और बुनियादी ढांचे के विकास में अहम मानी गई।
नया जी राम जी बिल इसी ढांचे में व्यापक बदलाव का प्रस्ताव करता है। जहां सरकार इसे सुधार और विस्तार के रूप में देख रही है, वहीं विपक्ष इसे अधिकार आधारित प्रणाली से हटने की प्रक्रिया मान रहा है।
राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार, यह धरना केवल एक विधेयक के विरोध तक सीमित नहीं है, बल्कि आगामी सत्रों में सरकार और विपक्ष के बीच बढ़ते टकराव का संकेत भी देता है। ग्रामीण भारत से जुड़े मुद्दे लंबे समय से चुनावी राजनीति का केंद्र रहे हैं और ऐसे में यह बहस आने वाले समय में और तेज हो सकती है।
धरना अगले दिन दोपहर तक जारी रहा, जिसके बाद टीएमसी सांसदों ने स्पष्ट किया कि वे संसद के भीतर और बाहर दोनों स्तरों पर इस विधेयक के खिलाफ अपनी आवाज़ उठाते रहेंगे।
