
बिहार की सियासत में एक और बड़ा बदलाव सामने आया है। जनता दल (यूनाइटेड) [जद(यू)] के बागी विधायक डॉक्टर संजीव कुमार अब आधिकारिक रूप से राष्ट्रीय जनता दल (राजद) में शामिल हो गए हैं। पार्टी के भीतर अपनी बेबाक राय रखने वाले संजीव कुमार का यह कदम जद(यू) नेतृत्व के प्रति बढ़ती असंतुष्टि को उजागर करता है।
डॉक्टर से नेता बने संजीव कुमार ने 2020 के विधानसभा चुनाव में पहली बार चुनाव लड़ा था और परबत्ता विधानसभा सीट से जीत हासिल की थी। उनका राजनीतिक सफर उनके पिता रमणंद प्रसाद सिंह की विरासत से जुड़ा है, जो चार बार विधायक और राज्य मंत्री रह चुके हैं।
पिछले एक साल से संजीव कुमार ने जद(यू) के शीर्ष नेतृत्व से कई बार असहमति जताई थी। उन्होंने विकास कार्यों, जनता से संवाद और गठबंधन नीति को लेकर पार्टी की दिशा पर सवाल उठाए थे।
राजद में शामिल होने के बाद उन्होंने कहा, “जद(यू) अब वह पार्टी नहीं रही जो कभी जनता के बीच लोकप्रिय थी। यह अपने मूल सिद्धांतों और जनता से जुड़ाव खो चुकी है।” उन्होंने आगे कहा कि राजद का समाजिक न्याय और युवा सशक्तिकरण का विज़न बिहार के विकास के लिए उनकी सोच से मेल खाता है।
जद(यू) के अंदरूनी सूत्रों के अनुसार, संजीव कुमार का यह कदम अप्रत्याशित नहीं था। एक वरिष्ठ नेता ने कहा, “वह लंबे समय से नेतृत्व की आलोचना कर रहे थे। संख्या के लिहाज से यह बड़ा असर नहीं डालेगा, लेकिन संदेश स्पष्ट है कि पार्टी के भीतर असंतोष बढ़ रहा है।”
वहीं राजद ने इसे अपनी विचारधारा के प्रसार के रूप में देखा है। राजद प्रवक्ता चितरंजन गगन ने कहा, “डॉ. संजीव कुमार का निर्णय इस बात का संकेत है कि लोग तेजस्वी यादव के नेतृत्व पर भरोसा कर रहे हैं। उनके अनुभव से पार्टी को मजबूती मिलेगी।”
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह बदलाव 2025 के विधानसभा चुनाव से पहले संभावित राजनीतिक पुनर्संरेखण का संकेत देता है। पिछले एक दशक में भाजपा और राजद के बीच गठबंधनों में उतार-चढ़ाव झेलने वाली जद(यू) अब अपने पारंपरिक वोट बैंक को बनाए रखने की चुनौती से जूझ रही है।
राजनीतिक विश्लेषक डॉ. अरविंद शर्मा के अनुसार, “संजीव कुमार का कदम बिहार की राजनीति में पीढ़ीगत परिवर्तन को दर्शाता है। नई पीढ़ी के नेता अधिक स्वतंत्रता और तेज़ बदलाव चाहते हैं। राजद की हालिया रणनीति उन्हें आकर्षित कर रही है।”
हालांकि तत्काल प्रभाव सीमित हो सकता है, लेकिन इस कदम का प्रतीकात्मक महत्व जद(यू) के लिए बड़ा झटका है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की नेतृत्व क्षमता पर सवाल उठ रहे हैं और राजद लगातार अपने जनाधार को मज़बूत कर रहा है।
2025 के चुनावों से पहले, बिहार की राजनीति में यह बदलाव नए समीकरण पैदा कर सकता है।