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छात्र आंदोलन ने पंजाब विश्वविद्यालय की स्वायत्तता बहस फिर जगाई

In Politics
November 12, 2025
rajneetiguru.com - पंजाब यूनिवर्सिटी में छात्र आंदोलन से स्वायत्तता की बहस फिर शुरू। Image Credit – The Indian Express

चंडीगढ़: पंजाब यूनिवर्सिटी में पिछले सप्ताह शुरू हुआ छात्र-नेतृत्व वाला विरोध प्रदर्शन अब एक बड़े आंदोलन का रूप ले चुका है, जिसने विश्वविद्यालय की स्वायत्तता पर एक बार फिर राष्ट्रीय स्तर पर बहस छेड़ दी है। केंद्र सरकार द्वारा सिनेट और सिंडिकेट की संरचना में बदलाव से जुड़ी अधिसूचना जारी किए जाने के बाद यह विवाद तेज हुआ।

हालांकि केंद्र ने अब यह अधिसूचना वापस ले ली है, लेकिन छात्रों, शिक्षकों और किसान संगठनों ने ऐलान किया है कि जब तक विश्वविद्यालय में पारदर्शी तरीके से सिनेट चुनाव की तारीख घोषित नहीं की जाती, आंदोलन जारी रहेगा।

पंजाब यूनिवर्सिटी देश की सबसे पुरानी उच्च शिक्षा संस्थाओं में से एक है, जिसकी जड़ें 19वीं सदी के उत्तरार्ध तक जाती हैं। स्वतंत्रता के बाद इसे एक स्वायत्त विश्वविद्यालय के रूप में पुनर्गठित किया गया था, जहाँ शैक्षणिक और प्रशासनिक निर्णय विश्वविद्यालय की अपनी संस्था—सिनेट और सिंडिकेट—के माध्यम से लिए जाते हैं।

केंद्र द्वारा जारी अधिसूचना में प्रस्तावित बदलावों के अनुसार, इन संस्थाओं के आकार को छोटा करने और कई निर्वाचित सीटों को समाप्त करने की बात कही गई थी। छात्रों और शिक्षकों का मानना था कि इससे विश्वविद्यालय के लोकतांत्रिक स्वरूप पर आघात होगा और केंद्र का हस्तक्षेप बढ़ेगा।

कई छात्र संगठनों ने मिलकर इस अधिसूचना के विरोध में मोर्चा खोला। विश्वविद्यालय परिसर में हुई सभाओं और रैलियों में छात्रों के साथ-साथ शिक्षकों और पूर्व छात्रों ने भी भाग लिया। आंदोलन में किसानों के संगठन भी शामिल हुए, जिन्होंने इसे “पंजाब की शैक्षणिक स्वायत्तता पर हमला” बताया।

छात्र नेता अजय सिंह ने कहा,

“हमारा संघर्ष केवल एक अधिसूचना के खिलाफ नहीं है, बल्कि विश्वविद्यालय की लोकतांत्रिक आत्मा को बचाने के लिए है। जब तक चुनाव की तिथि और पारदर्शी प्रक्रिया की घोषणा नहीं होती, हम पीछे नहीं हटेंगे।”

केंद्र सरकार ने शुरुआती विरोध के बाद अधिसूचना को वापस लेने की घोषणा की, यह कहते हुए कि “यह निर्णय पुनर्विचार के बाद लिया गया है और सभी पक्षों की राय सुनी जाएगी।” हालांकि विपक्षी दलों ने इसे छात्रों की जीत बताते हुए कहा कि यह कदम देर से लिया गया।

राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि यह मुद्दा केवल एक विश्वविद्यालय तक सीमित नहीं है, बल्कि यह भारत में उच्च शिक्षा संस्थानों की स्वायत्तता और संघीय ढांचे के बीच संतुलन के बड़े सवाल को उजागर करता है।

विश्वविद्यालय के कई शिक्षाविदों का कहना है कि प्रशासनिक सुधारों के नाम पर संस्थानों की निर्णय-क्षमता सीमित की जा रही है। प्रोफेसर मीना चौधरी ने कहा,

“शैक्षणिक संस्थानों को अगर बार-बार बाहरी दबावों में लाया जाएगा तो नवाचार और स्वतंत्र विचार की संस्कृति पर असर पड़ेगा। विश्वविद्यालयों को निर्णय लेने में स्वतंत्रता मिलनी चाहिए।”

विश्वविद्यालय प्रशासन ने संकेत दिया है कि सिनेट चुनाव की प्रक्रिया को जल्द बहाल किया जाएगा और नई तिथि घोषित करने पर विचार हो रहा है। वहीं, छात्र संगठनों ने कहा है कि वे तब तक धरना स्थल नहीं छोड़ेंगे जब तक उन्हें आधिकारिक आश्वासन नहीं मिल जाता।

इस पूरे घटनाक्रम ने पंजाब यूनिवर्सिटी के प्रशासन और छात्रों के बीच संवाद की आवश्यकता को और अधिक रेखांकित किया है। विशेषज्ञों का मानना है कि यदि सरकार और छात्र संगठन एक साझा मंच पर बैठकर समाधान खोजें, तो यह अन्य विश्वविद्यालयों के लिए भी मिसाल बन सकता है।

पंजाब यूनिवर्सिटी का यह आंदोलन केवल एक प्रशासनिक विवाद नहीं रहा, बल्कि यह उस मूल प्रश्न को सामने लाया है कि क्या भारत के विश्वविद्यालय अपने फैसले खुद ले सकते हैं या उन्हें हमेशा बाहरी नियंत्रण में रहना होगा। अधिसूचना वापस लेने के बाद भी यह स्पष्ट है कि स्वायत्तता की बहस अभी खत्म नहीं हुई है।

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  • नमस्ते, मैं सब्यसाची बिस्वास हूँ — आप मुझे सबी भी कह सकते हैं!
    दिल से एक कहानीकार, मैं हर क्लिक, हर स्क्रॉल और हर नए विचार में रचनात्मकता खोजता हूँ। चाहे दिल से लिखे गए शब्दों से जुड़ाव बनाना हो, कॉफी के साथ नए विचारों पर काम करना हो, या बस आसपास की दुनिया को महसूस करना — मैं हमेशा उन कहानियों की तलाश में रहता हूँ जो असर छोड़ जाएँ।

    मुझे शब्दों, कला और विचारों के मेल से नई दुनिया बनाना पसंद है। जब मैं लिख नहीं रहा होता या कुछ नया सोच नहीं रहा होता, तब मुझे नई कैफ़े जगहों की खोज करना, अनायास पलों को कैमरे में कैद करना या अपने अगले प्रोजेक्ट के लिए नोट्स लिखना अच्छा लगता है।
    हमेशा सीखते रहना और आगे बढ़ना — यही मेरा जीवन और लेखन का मंत्र है।

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