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गोरखालैंड मुद्दे पर केंद्र और ममता के बीच नई टकराव रेखा

In Politics
October 25, 2025
rajneetiguru.com - गोरखालैंड विवाद पर केंद्र और ममता में नई तनातनी। Image Credit – The Indian Express

गोरखालैंड मुद्दे पर केंद्र सरकार द्वारा नए वार्ताकार की नियुक्ति ने एक बार फिर पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और भाजपा के बीच राजनीतिक टकराव को हवा दे दी है। केंद्र ने इस कदम को दार्जिलिंग पहाड़ियों के गोरखा समुदाय की आकांक्षाओं को सुनने की पहल बताया है, वहीं तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) ने इसे “राजनीतिक फायदा उठाने की कोशिश” कहा है।

गृह मंत्री अमित शाह ने हाल ही में घोषणा की कि केंद्र “स्थायी राजनीतिक समाधान” खोजने के लिए विभिन्न हितधारकों से संवाद के लिए एक वार्ताकार नियुक्त करेगा। यह निर्णय 2026 के विधानसभा चुनावों से पहले आया है, जब उत्तर बंगाल की पहाड़ी सीटें एक बार फिर निर्णायक भूमिका निभा सकती हैं।

भाजपा ने इस कदम को “शांति और विकास के प्रति प्रतिबद्धता” बताया है, जबकि ममता बनर्जी ने कहा, “भाजपा ने पिछले दस वर्षों में गोरखा समुदाय के लिए कुछ नहीं किया, और अब वे चुनाव से पहले बंगाल को बांटने की कोशिश कर रहे हैं।”

गोरखालैंड की मांग दशकों पुरानी है, जो नेपालीभाषी गोरखा समुदाय की सांस्कृतिक और भाषाई पहचान से जुड़ी है। 1980 के दशक में सुभाष घीसिंग के नेतृत्व में यह आंदोलन उभरा और बाद में बिमल गुरूंग के नेतृत्व में फिर से मजबूत हुआ।

2011 में तृणमूल सरकार के दौरान गोरखालैंड टेरिटोरियल एडमिनिस्ट्रेशन (GTA) के गठन से कुछ हद तक स्वायत्तता मिली, लेकिन पूर्ण राज्य की मांग समय-समय पर फिर उठती रही है।

बीजीपीएम (भारतीय गोरखा प्रजातांत्रिक मोर्चा) के नेता अनित थापा ने कहा, “हम केंद्र की इस पहल का स्वागत करते हैं। संवाद ही इस लंबे समय से चले आ रहे मुद्दे का समाधान निकाल सकता है।”

हालांकि, कई विश्लेषक मानते हैं कि यह भाजपा की रणनीतिक चाल है ताकि उत्तर बंगाल में अपनी कमजोर होती पकड़ को फिर से मजबूत किया जा सके।

घोषणा के समय ने राजनीतिक हलकों में हलचल मचा दी है। विशेषज्ञों का कहना है कि भाजपा अब उत्तर बंगाल के जिलों में अपना जनाधार फिर से मजबूत करने की कोशिश कर रही है, जहां गोरखा मतदाता निर्णायक भूमिका निभा सकते हैं।

राजनीतिक विश्लेषक प्रोफेसर सुजाता चक्रवर्ती ने कहा, “केंद्र का यह कदम प्रतीकात्मक और रणनीतिक दोनों है। यह पुरानी आकांक्षाओं को जगाता है, लेकिन पुराने घाव भी ताजा कर सकता है।”

वहीं, राज्य मंत्री अरूप बिस्वास ने कहा, “हम पहाड़ियों के विकास के पक्ष में हैं, लेकिन राज्य के विभाजन के किसी भी प्रयास का विरोध करेंगे।”

अब जबकि केंद्र और राज्य दोनों अलग-अलग रुख अपना रहे हैं, गोरखालैंड मुद्दा एक बार फिर 2026 के विधानसभा चुनावों का बड़ा मुद्दा बन सकता है। वार्ताकार की सफलता इस पर निर्भर करेगी कि वह क्षेत्रीय आकांक्षाओं और राजनीतिक स्थिरता के बीच संतुलन कैसे स्थापित करता है।

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  • नमस्ते, मैं सब्यसाची बिस्वास हूँ — आप मुझे सबी भी कह सकते हैं!
    दिल से एक कहानीकार, मैं हर क्लिक, हर स्क्रॉल और हर नए विचार में रचनात्मकता खोजता हूँ। चाहे दिल से लिखे गए शब्दों से जुड़ाव बनाना हो, कॉफी के साथ नए विचारों पर काम करना हो, या बस आसपास की दुनिया को महसूस करना — मैं हमेशा उन कहानियों की तलाश में रहता हूँ जो असर छोड़ जाएँ।

    मुझे शब्दों, कला और विचारों के मेल से नई दुनिया बनाना पसंद है। जब मैं लिख नहीं रहा होता या कुछ नया सोच नहीं रहा होता, तब मुझे नई कैफ़े जगहों की खोज करना, अनायास पलों को कैमरे में कैद करना या अपने अगले प्रोजेक्ट के लिए नोट्स लिखना अच्छा लगता है।
    हमेशा सीखते रहना और आगे बढ़ना — यही मेरा जीवन और लेखन का मंत्र है।

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