कोलकाता — पश्चिम बंगाल में बूथ लेवल ऑफिसरों (BLOs) ने बढ़ते कार्यभार और चुनावी ऐप में किए गए हालिया बदलावों के विरोध में राज्य के मुख्य निर्वाचन अधिकारी (CEO) के कार्यालय के बाहर प्रदर्शन किया। इस दौरान प्रदर्शनकारियों और पुलिस के बीच हल्की झड़प की भी खबर है, जिससे स्थिति कुछ समय के लिए तनावपूर्ण हो गई। प्रशासन ने बाद में स्थिति को नियंत्रण में बताया।
प्रदर्शन कर रहे BLOs का कहना है कि हाल के महीनों में उन पर काम का दबाव लगातार बढ़ता जा रहा है। मतदाता सूची के पुनरीक्षण, घर-घर सत्यापन, ऑनलाइन डेटा अपडेट और अब नए डिजिटल ऐप के माध्यम से रियल-टाइम रिपोर्टिंग जैसे कार्यों ने उनकी जिम्मेदारियों को कई गुना बढ़ा दिया है। BLOs का आरोप है कि ऐप में किए गए तकनीकी बदलावों को बिना पर्याप्त प्रशिक्षण और समय दिए लागू कर दिया गया, जिससे फील्ड स्तर पर काम करना मुश्किल हो रहा है।
प्रदर्शन में शामिल एक BLO ने कहा,
“हम चुनावी प्रक्रिया का अहम हिस्सा हैं, लेकिन हमारी समस्याओं पर ध्यान नहीं दिया जा रहा। नए ऐप में बार-बार तकनीकी दिक्कतें आती हैं और तय समय में काम पूरा न होने पर हमसे जवाब-तलब किया जाता है।”
BLOs का कहना है कि वे पहले से ही शिक्षा, स्वास्थ्य या अन्य विभागों में अपनी नियमित जिम्मेदारियों के साथ चुनावी काम करते हैं। ऐसे में अतिरिक्त डिजिटल रिपोर्टिंग और सख्त समयसीमा ने मानसिक और शारीरिक दबाव बढ़ा दिया है। कई BLOs ने यह भी आरोप लगाया कि ऐप में बदलाव के कारण पहले से भरा गया डेटा दोबारा अपडेट करना पड़ रहा है।
पुलिस के अनुसार, जब प्रदर्शनकारी CEO कार्यालय की ओर बढ़ने लगे तो उन्हें रोकने का प्रयास किया गया, जिसके दौरान धक्का-मुक्की की स्थिति बनी। पुलिस अधिकारियों ने कहा कि किसी को गंभीर चोट नहीं आई और स्थिति को जल्द ही शांत कर लिया गया। प्रदर्शनकारियों का दावा है कि वे शांतिपूर्ण तरीके से अपनी मांगें रखना चाहते थे।
पृष्ठभूमि में देखें तो बूथ लेवल ऑफिसर भारतीय चुनाव व्यवस्था की आधारशिला माने जाते हैं। मतदाता सूची को अद्यतन रखना, नए मतदाताओं का पंजीकरण, मृत या स्थानांतरित मतदाताओं का नाम हटाना और चुनाव के दौरान जमीनी स्तर पर प्रशासन की मदद करना BLOs की प्रमुख जिम्मेदारियों में शामिल है। देशभर में चुनाव प्रक्रिया के डिजिटल होने के साथ ही BLOs की भूमिका और भी तकनीकी होती जा रही है।
हाल के वर्षों में निर्वाचन आयोग ने मतदाता डेटा को अधिक पारदर्शी और त्रुटिरहित बनाने के लिए मोबाइल ऐप और ऑनलाइन प्लेटफॉर्म का इस्तेमाल बढ़ाया है। हालांकि, फील्ड स्तर पर काम करने वाले कर्मचारियों का कहना है कि तकनीकी बदलावों के साथ-साथ पर्याप्त संसाधन, प्रशिक्षण और समय भी दिया जाना चाहिए।
इस मामले पर एक चुनावी विशेषज्ञ ने कहा,
“डिजिटल सुधार जरूरी हैं, लेकिन उन्हें लागू करते समय जमीनी हकीकत को समझना भी उतना ही अहम है। यदि BLOs पर अत्यधिक दबाव पड़ेगा, तो इसका असर मतदाता सूची की गुणवत्ता पर भी पड़ सकता है।”
राज्य चुनाव कार्यालय की ओर से कहा गया है कि BLOs की शिकायतों को गंभीरता से लिया जा रहा है और संबंधित विभागों के साथ चर्चा की जाएगी। अधिकारियों ने यह भी संकेत दिया कि ऐप से जुड़ी तकनीकी समस्याओं और कार्यभार के मुद्दे पर समाधान खोजने के प्रयास किए जा रहे हैं।
फिलहाल, BLOs ने चेतावनी दी है कि यदि उनकी मांगों पर ठोस कार्रवाई नहीं हुई, तो वे आगे भी आंदोलन का रास्ता अपना सकते हैं। इस घटनाक्रम ने एक बार फिर यह सवाल खड़ा कर दिया है कि चुनावी सुधारों और डिजिटल प्रक्रियाओं को लागू करते समय जमीनी कर्मचारियों की भूमिका और उनकी सीमाओं को किस तरह संतुलित किया जाए।
