उत्तराखंड में कांग्रेस पार्टी ने अपने संगठनात्मक ढांचे में बड़ा बदलाव करते हुए नया नेतृत्व घोषित किया है। इस कदम के साथ पार्टी ने अपने वरिष्ठ नेता हरीश रावत की भूमिका को सीमित करते हुए उनके पूर्व सहयोगी गणेश गोदियाल को उत्तराखंड प्रदेश कांग्रेस कमेटी (पीसीसी) का नया अध्यक्ष नियुक्त किया है।
यह निर्णय पार्टी उच्च नेतृत्व की सहमति से लिया गया है, जिसके तहत करन महरा को हटाकर गणेश गोदियाल को फिर से जिम्मेदारी सौंपी गई है। पार्टी सूत्रों के अनुसार, इस फेरबदल का उद्देश्य जातीय, क्षेत्रीय और पीढ़ीगत संतुलन कायम रखना है।
गढ़वाल क्षेत्र से आने वाले अनुभवी नेता गणेश गोदियाल पहले भी एक वर्ष तक पीसीसी प्रमुख रह चुके हैं। 2022 विधानसभा चुनावों में कांग्रेस की हार के बाद उन्हें हटाया गया था। अब उनकी पुनर्नियुक्ति को संगठन में स्थिरता और कार्यकर्ताओं में नई ऊर्जा लाने की कोशिश के रूप में देखा जा रहा है।
वहीं, हरीश रावत की भूमिका सीमित किए जाने को कांग्रेस में नेतृत्व परिवर्तन और नई पीढ़ी को आगे लाने के संकेत के रूप में देखा जा रहा है। एक समय उत्तराखंड कांग्रेस का प्रमुख चेहरा रहे रावत अब निर्णय लेने की प्रक्रिया से धीरे-धीरे दूर हो रहे हैं। हालांकि वे अब भी कांग्रेस कार्यसमिति के सदस्य हैं, लेकिन राज्य स्तर के निर्णयों में उनकी सक्रियता काफी घट गई है।
कांग्रेस का शीर्ष नेतृत्व अब 2027 विधानसभा चुनावों से पहले राज्य इकाई को पुनर्जीवित करने पर ध्यान केंद्रित कर रहा है। पार्टी का मकसद युवा नेतृत्व को आगे लाना और सभी सामाजिक वर्गों का प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करना है।
पार्टी के एक वरिष्ठ नेता ने नाम न बताने की शर्त पर कहा, “कांग्रेस अब उत्तराखंड में नई ऊर्जा और समावेशी नेतृत्व पर जोर देना चाहती है। गणेश गोदियाल का संगठनात्मक अनुभव और सभी गुटों में स्वीकार्यता उन्हें उपयुक्त बनाती है।”
यह बदलाव भाजपा के मजबूत राजनीतिक आधार को चुनौती देने के लिए कांग्रेस की व्यापक रणनीति का हिस्सा भी माना जा रहा है। भाजपा 2017 से राज्य की सत्ता में है और लगातार विधानसभा व लोकसभा चुनावों में जीत दर्ज कर रही है।
नए अध्यक्ष के रूप में गणेश गोदियाल के सामने सबसे बड़ी चुनौती पार्टी के संगठन को मजबूत करना, कार्यकर्ताओं को सक्रिय करना और जनता के बीच विश्वास बहाल करना होगी।
नियुक्ति के बाद गोदियाल ने कहा, “हमारा लक्ष्य कांग्रेस को बूथ स्तर तक मजबूत बनाना है और जनता के मुद्दों को प्राथमिकता देना है। राज्य को एक जिम्मेदार और रचनात्मक विपक्ष की जरूरत है।”
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह फेरबदल कांग्रेस के लिए अनुभव और नई सोच का संतुलित मिश्रण पेश करता है। लोकसभा चुनावों के बाद पार्टी के पास अब सीमित समय है, इसलिए यह बदलाव 2027 चुनावों के लिए रणनीतिक दृष्टि से अहम माना जा रहा है।
