संगठन में बदलाव की कोशिशों को पुराने गुटबाज़ी और ज़मीनी असंतोष ने फिर से घेरा
भोपाल, 18 अगस्त: मध्य प्रदेश में कांग्रेस द्वारा संगठनात्मक पुनर्गठन की कवायद जहां एक ओर पार्टी को आगामी चुनावों से पहले नई ऊर्जा देने की कोशिश मानी जा रही है, वहीं दूसरी ओर यह कवायद अब आंतरिक विरोध और गुटबाज़ी की पुरानी बीमारी से घिरती दिख रही है। कई नेता नियुक्तियों से असहमति जताते हुए खुलेआम सवाल उठा रहे हैं।
अंदरूनी कलह ने बिगाड़ा गणित
सूत्रों के मुताबिक, हाल ही में जिन 50 से अधिक जिला अध्यक्षों की घोषणा की गई है, उनमें से 15 नेताओं ने कभी भी यह पद नहीं मांगा था। एक वरिष्ठ नेता ने नाम न उजागर करने की शर्त पर कहा, “इनमें से कई नाम बिना ज़मीनी फीडबैक के तय किए गए हैं। क्या स्थानीय कार्यकर्ताओं की राय ली भी गई थी?” इस सवाल ने पार्टी के अंदरूनी लोकतंत्र पर बड़ा सवाल खड़ा कर दिया है।
गुटों की राजनीति फिर सतह पर
प्रदेश कांग्रेस के भीतर दिग्विजय सिंह और कमलनाथ गुटों के बीच लंबे समय से चल रही खींचतान एक बार फिर सामने आ गई है। संगठन में कुछ नियुक्तियों को एकतरफा फैसला बताया जा रहा है, जिससे असंतोष खुलकर उभरने लगा है। कुछ जिलों में तो कार्यकर्ताओं ने विरोध प्रदर्शन तक की चेतावनी दे दी है।
नेतृत्व की चुनौती
राज्य में नेतृत्व को लेकर भी असमंजस की स्थिति बनी हुई है। पुराने चेहरों को हटाकर युवा नेतृत्व को आगे लाने की कोशिशें अब खुद पार्टी के भीतर ही विवादों में घिरती दिख रही हैं। पार्टी के एक अन्य वरिष्ठ पदाधिकारी का कहना है कि “जब तक पार्टी गुटबाज़ी से ऊपर नहीं उठेगी, तब तक संगठन मजबूत नहीं हो सकता।”
निष्कर्ष
मध्य प्रदेश में कांग्रेस का पुनर्गठन उसे नई दिशा देने की कोशिश जरूर है, लेकिन नेताओं की अनिच्छा, ज़मीनी कार्यकर्ताओं की अनदेखी और आंतरिक टकराव इस राह को आसान नहीं बना रहे। आने वाले समय में यदि इन अंतर्विरोधों को नहीं सुलझाया गया, तो पार्टी को आगामी चुनावों में इसका खामियाजा भुगतना पड़ सकता है।