
कर्नाटक सरकार ने सरकारी स्कूलों, कॉलेजों और दफ्तरों जैसी सार्वजनिक संपत्तियों के उपयोग को नियंत्रित करने के लिए एक नया आदेश मंजूर किया है। हाल ही में हुई कैबिनेट बैठक में लिया गया यह निर्णय इस उद्देश्य से है कि सरकारी परिसरों का उपयोग केवल अधिकृत और वैध कार्यों के लिए ही किया जाए।
यह कदम उस समय उठाया गया है जब राज्य के एक मंत्री ने सरकारी परिसरों पर निजी या वैचारिक संगठनों की गतिविधियों को लेकर चिंता जताई थी। कैबिनेट का यह फैसला सार्वजनिक संपत्तियों के उपयोग में निष्पक्षता और अनुशासन बनाए रखने की दिशा में एक व्यापक कदम माना जा रहा है।
कानून और संसदीय कार्य मंत्री एच. के. पाटिल ने कहा कि इस आदेश का उद्देश्य पारदर्शिता और निष्पक्षता लाना है। उन्होंने कहा, “किसी भी संगठन को सार्वजनिक संपत्तियों का निजी या वैचारिक लाभ के लिए दुरुपयोग नहीं करना चाहिए।” यह आदेश सरकारी इमारतों, शैक्षणिक संस्थानों, सहायता प्राप्त संगठनों और अन्य सरकारी परिसरों पर लागू होगा।
नई व्यवस्था के तहत, किसी भी कार्यक्रम, रैली या सभा के आयोजन से पहले पूर्व अनुमति लेना अनिवार्य होगा। राज्य सरकार इस प्रक्रिया को सरल और पारदर्शी बनाने के लिए एक डिजिटल अनुमति प्रणाली लागू करने की भी योजना बना रही है।
सार्वजनिक संपत्तियों का गैर-सरकारी कार्यक्रमों के लिए उपयोग लंबे समय से विवाद का विषय रहा है। कई राज्यों में स्कूल के मैदानों या सामुदायिक स्थलों पर सामाजिक व सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं, लेकिन स्पष्ट नियमों के अभाव में विवाद और राजनीतिक आरोप लगते रहे हैं।
कर्नाटक में यह बहस तब और तेज हुई जब कुछ नेताओं ने कहा कि सरकारी संपत्तियों का उपयोग किसी विशेष विचारधारा को बढ़ावा देने के लिए नहीं होना चाहिए। सरकार का यह निर्णय अब उस दिशा में एक सुधारात्मक कदम माना जा रहा है, जिससे शासन की धर्मनिरपेक्ष और निष्पक्ष छवि बरकरार रखी जा सके।
जहाँ कई सामाजिक संगठनों ने इस निर्णय का स्वागत किया है, वहीं विपक्ष ने इसे राजनीतिक रूप से प्रेरित बताया है। विपक्ष का कहना है कि इस आदेश का इस्तेमाल कुछ खास संगठनों के खिलाफ किया जा सकता है।
हालाँकि, सरकारी प्रवक्ताओं ने स्पष्ट किया कि यह आदेश किसी एक समूह के खिलाफ नहीं है। एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, “यह अनुशासन की बात है, भेदभाव की नहीं। सार्वजनिक संपत्ति जनता की है, और उसका उपयोग जिम्मेदारी से होना चाहिए।”
विशेषज्ञों का मानना है कि यह निर्णय अन्य राज्यों के लिए भी उदाहरण बन सकता है, जहाँ सार्वजनिक संपत्तियों के उपयोग को लेकर विवाद बने रहते हैं।
कर्नाटक सरकार का यह निर्णय लोकतांत्रिक व्यवस्था में सार्वजनिक स्थलों के उपयोग को परिभाषित करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। यदि इसे समान रूप से लागू किया गया, तो यह न केवल सार्वजनिक संपत्तियों की सुरक्षा करेगा बल्कि शासन की निष्पक्षता और नागरिक स्वतंत्रता के बीच बेहतर संतुलन भी स्थापित करेगा।