
मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुखू के नेतृत्व वाली हिमाचल प्रदेश सरकार ने हाल ही में कर्मचारियों के वेतन लाभों में कटौती के आदेश को व्यापक विरोध के बाद वापस ले लिया है। इस त्वरित पलटाव ने न केवल सरकार और कर्मचारियों के बीच संबंधों पर बल्कि राज्य की बिगड़ती वित्तीय स्थिति पर भी ध्यान आकर्षित किया है। वर्ष 2023–24 में राज्य का ऋण और देनदारियाँ ₹95,633 करोड़ तक पहुँच गईं।
इस माह की शुरुआत में सरकार ने एक अधिसूचना जारी कर प्रावधान को समाप्त कर दिया था, जिसके तहत कर्मचारी सेवा अवधि पूरी करने के बाद उच्च ग्रेड वेतन प्राप्त कर सकते थे। इस फैसले से 10,000 से अधिक कर्मचारियों के मासिक वेतन में ₹10,000 से ₹15,000 तक की कटौती हो सकती थी।
फैसले के तुरंत बाद कर्मचारियों के संगठनों ने विरोध शुरू कर दिया और विपक्षी दलों ने भी सरकार पर निशाना साधा। कुछ ही दिनों में सरकार को आदेश वापस लेना पड़ा। मुख्यमंत्री सुखू ने कहा, “सरकार अपने कर्मचारियों के हितों की रक्षा के लिए प्रतिबद्ध है। ऐसा कोई भी निर्णय, जिससे उनका विश्वास कमजोर हो, आगे नहीं बढ़ाया जाएगा।”
यह विवाद ऐसे समय में सामने आया है जब हिमाचल प्रदेश की वित्तीय स्थिति पहले से ही तनावपूर्ण है। राज्य का कुल ऋण और देनदारियाँ ₹95,000 करोड़ से अधिक हो चुकी हैं, और ऋण-से-राज्य घरेलू उत्पाद का अनुपात भी लगातार बढ़ रहा है।
अधिकांश उधार पुराने ऋणों की अदायगी में जा रहे हैं, जिससे विकास योजनाओं और कल्याणकारी कार्यक्रमों के लिए जगह सीमित हो गई है। वर्ष 2023–24 में ₹5,500 करोड़ से अधिक का राजस्व घाटा दर्ज किया गया, जबकि सरकारी खर्च का लगभग तीन-चौथाई हिस्सा वेतन, पेंशन और ब्याज भुगतान जैसी अनिवार्य मदों में गया।
विपक्षी भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने कांग्रेस सरकार की आलोचना करते हुए कहा कि कर्मचारियों के वेतन में कटौती का प्रयास वित्तीय अव्यवस्था को दर्शाता है। पार्टी नेताओं ने आरोप लगाया कि सरकार नए राजस्व स्रोत विकसित करने में विफल रही है और लगातार कर्ज पर निर्भर हो रही है।
कर्मचारी संगठनों ने भी नाराज़गी जताई। सचिवालय सेवाएं कर्मचारी संगठन के प्रतिनिधि संजीव शर्मा ने कहा, “कर्मचारी अपने मासिक वेतन पर ही पारिवारिक खर्च चलाते हैं। अचानक की गई कटौती उनके लिए गंभीर झटका होती।”
यह पहली बार नहीं है जब सुखू सरकार को इस तरह के फैसलों पर पीछे हटना पड़ा हो। 2024 में सरकार ने वेतन भुगतान की तारीखें बदलने का प्रयोग किया था, लेकिन कर्मचारियों के दबाव में यह योजना भी वापस लेनी पड़ी।
सरकार ने कई बार मंत्रियों और वरिष्ठ अधिकारियों का वेतन प्रतीकात्मक रूप से स्थगित किया है, और केंद्र से अतिरिक्त सहायता की मांग भी की है। लेकिन इन प्रयासों से वित्तीय संकट में ज्यादा राहत नहीं मिली।
सरकार अब जलविद्युत परियोजनाओं से अधिक रॉयल्टी और बेहतर कर संग्रहण जैसे विकल्पों पर विचार कर रही है। विशेषज्ञों का मानना है कि खर्चों में कटौती और पूंजीगत निवेश को बढ़ाना राज्य की वित्तीय स्थिति को स्थिर करने के लिए आवश्यक होगा।
फिलहाल, वेतन कटौती का फैसला वापस लेना यह दर्शाता है कि वित्तीय अनुशासन और राजनीतिक-सामाजिक भरोसे के बीच संतुलन बनाना सरकार के लिए एक कठिन चुनौती है।
एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, “सरकार एक पतली रस्सी पर चल रही है। वित्तीय अनुशासन ज़रूरी है, लेकिन कर्मचारियों का विश्वास और जनता का मनोबल भी उतना ही महत्वपूर्ण है।”