
तमिलनाडु के करूर में हाल ही में आयोजित एक राजनीतिक कार्यक्रम को लेकर विवाद खड़ा हो गया है। कांग्रेस सांसद जोथिमणि ने इस आयोजन की योजना और समय पर सवाल उठाते हुए कहा कि यह कार्यक्रम वेतन दिवस के दिन हुआ, जब शहर की सड़कों पर पहले से ही हजारों लोग मौजूद थे।
पत्रकारों से बातचीत में करूर की सांसद जोथिमणि ने कहा, “करूर कोई ऐसा बड़ा शहर नहीं है जो शहर के बीचोंबीच हजारों लोगों की भीड़ संभाल सके। इस तरह के बड़े आयोजन आम तौर पर शहर के बाहर आयोजित किए जाते हैं, जहां ज्यादा जगह और यातायात प्रबंधन की सुविधा होती है। वेतन दिवस पर ऐसा आयोजन करना गैरजिम्मेदाराना कदम था।”
सांसद का कहना है कि इस कार्यक्रम में 25,000 से 30,000 लोगों को बिना उचित योजना और प्रशासनिक समन्वय के लाया गया। उन्होंने कहा कि इससे न केवल आम जनजीवन प्रभावित हुआ बल्कि सुरक्षा संबंधी खतरे भी बढ़े। “यह समझना मुश्किल है कि इतनी बड़ी भीड़ को बुनियादी व्यवस्थाओं के बिना कैसे इकट्ठा किया गया। आम जनता की सुविधाओं के बारे में बिल्कुल नहीं सोचा गया,” उन्होंने जोड़ा।
स्थानीय सूत्रों का कहना है कि जिस दिन यह कार्यक्रम हुआ, उसी दिन हजारों वस्त्र उद्योग कर्मियों को मासिक वेतन भी दिया गया। इस कारण बाज़ार और सड़कें पहले से ही भीड़भाड़ से भरी थीं। कई लोगों को यातायात जाम, देरी और आवश्यक सेवाओं तक पहुंचने में कठिनाई का सामना करना पड़ा। कुछ व्यापारियों ने भी शिकायत की कि इससे उनके कामकाज पर असर पड़ा।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि तमिलनाडु की राजनीति में बड़े जनसमूह आम बात है, लेकिन प्रशासनिक तालमेल के बिना ऐसे आयोजन तनाव बढ़ा सकते हैं और जनता का भरोसा कम कर सकते हैं।
संविधान विशेषज्ञों ने भी कहा कि राजनीतिक दलों को सभा आयोजित करने का अधिकार है, लेकिन इसे सामाजिक जिम्मेदारी के साथ निभाना चाहिए। “लोकतांत्रिक अभिव्यक्ति का हिस्सा है कि लोग इकट्ठा हों, लेकिन यह सुनिश्चित करना जरूरी है कि आम नागरिकों के जीवन और रोज़गार में बाधा न आए,” एक वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक ने कहा।
जोथिमणि ने साफ किया कि उनका विरोध किसी पार्टी की सभा करने की आज़ादी से नहीं है, बल्कि उस अव्यवस्थित तरीके से है जिसमें यह आयोजन किया गया। उन्होंने कहा, “यह राजनीति का नहीं बल्कि लोगों के जीवन का मुद्दा है। अगर नेता अपनी ताकत दिखाना चाहते हैं, तो उन्हें समाज के प्रति अपनी जिम्मेदारी भी दिखानी होगी।”
इस घटना ने राज्य में राजनीतिक जवाबदेही और आयोजन प्रबंधन को लेकर नई बहस छेड़ दी है। जहां समर्थक इसे टीवीके की बढ़ती ताकत का प्रदर्शन बता रहे हैं, वहीं आलोचक शहरों में बड़े आयोजनों के लिए सख्त दिशा-निर्देशों की मांग कर रहे हैं।
आगामी चुनावी अभियानों के मद्देनज़र करूर की यह घटना राजनीतिक अभिव्यक्ति और सार्वजनिक सुविधा के बीच संतुलन पर चर्चा का अहम बिंदु बनी रह सकती है।