
जम्मू-कश्मीर में बडगाम विधानसभा उपचुनाव मुख्यमंत्री ओमर अब्दुल्ला सरकार की पहली बड़ी राजनीतिक परीक्षा बन गया है। यह सीट खुद ओमर अब्दुल्ला ने मुख्यमंत्री बनने के बाद खाली की थी। अब इस सीट पर नेशनल कॉन्फ्रेंस (एनसी) और पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) के बीच मुकाबला परिवार के भीतर की खींचतान और पार्टी के अंदरूनी मतभेदों के कारण और भी दिलचस्प हो गया है।
बडगाम की यह सीट शिया बहुल इलाका है, जहां धार्मिक और सामाजिक नेतृत्व का बड़ा प्रभाव माना जाता है। इस वजह से यह उपचुनाव केवल एक राजनीतिक मुकाबला नहीं, बल्कि शिया समुदाय की नब्ज़ को समझने का भी संकेतक माना जा रहा है।
एनसी ने इस उपचुनाव में ओमर अब्दुल्ला के महामामा को उम्मीदवार बनाया है, जबकि पीडीपी ने ओमर के चचेरे भाई को मैदान में उतारा है। इससे परिवार के भीतर का टकराव राजनीतिक स्तर पर खुलकर सामने आ गया है।
स्थिति तब और पेचीदा हो गई जब श्रीनगर से सांसद और ओमर अब्दुल्ला के करीबी माने जाने वाले आगा रूहुल्लाह मेहदी ने चुनाव प्रचार से दूरी बना ली। मेहदी बडगाम क्षेत्र में एक प्रभावशाली शिया नेता हैं और उनकी निष्क्रियता एनसी के लिए नुकसानदायक मानी जा रही है।
एक राजनीतिक विश्लेषक के अनुसार, “यह उपचुनाव केवल एक सीट की बात नहीं है, बल्कि यह दिखाएगा कि ओमर अब्दुल्ला की सरकार अपनी ही पार्टी के भीतर कितनी एकजुटता बनाए रख पाती है।”
राजनीतिक दृष्टि से बडगाम केंद्रीय कश्मीर की अहम सीट है। इस क्षेत्र के मतदाता लंबे समय से सत्ता परिवर्तन के मूड का संकेत देते आए हैं। 2014 और 2019 के चुनावों में यहां के मतदान पैटर्न ने कई बार घाटी की राजनीति का रुख तय किया है।
इस बार भी बडगाम का परिणाम पूरे जम्मू-कश्मीर की राजनीति पर असर डाल सकता है। यदि एनसी यह सीट बचाने में सफल रहती है, तो यह सरकार के प्रति जनता के विश्वास का संकेत माना जाएगा। वहीं, अगर परिणाम उलट जाते हैं, तो यह विपक्षी पीडीपी के लिए बड़ा नैतिक बल साबित होगा।
पार्टी सूत्रों के अनुसार, एनसी के कुछ स्थानीय कार्यकर्ता उम्मीदवार चयन को लेकर नाराज़ हैं। उनका कहना है कि स्थानीय स्तर पर संगठन से जुड़े कई नामों को नज़रअंदाज़ किया गया। दूसरी ओर, पीडीपी अपने उम्मीदवार को “स्थानीय चेहरा” बताकर जनता के बीच सहानुभूति जुटाने की कोशिश कर रही है।
राजनीतिक पर्यवेक्षकों का मानना है कि यह चुनाव व्यक्तिगत प्रभाव, धार्मिक जुड़ाव और पारिवारिक राजनीति के मिश्रण से तय होगा।
मुख्यमंत्री के रूप में यह ओमर अब्दुल्ला का पहला उपचुनाव है, जो उनकी लोकप्रियता और शासन की स्वीकृति का प्रतीक माना जा रहा है। एक वरिष्ठ राजनीतिक टिप्पणीकार के अनुसार,
“बडगाम का नतीजा तय करेगा कि ओमर अब्दुल्ला अपनी पार्टी को किस हद तक एकजुट रख पाए हैं और जनता उनके नेतृत्व पर कितना भरोसा करती है।”
बडगाम का उपचुनाव केवल एक सीट का परिणाम नहीं होगा, बल्कि यह आने वाले पंचायत और निकाय चुनावों के लिए भी राजनीतिक तापमान तय करेगा। एनसी जहां अपनी सरकार के पहले वर्ष को स्थिरता और विश्वास के रूप में पेश करना चाहती है, वहीं पीडीपी इसे अपनी वापसी का मौका मान रही है।
अंततः, बडगाम की यह सीट ओमर अब्दुल्ला के लिए राजनीतिक रूप से उतनी ही अहम है जितनी प्रतीकात्मक रूप से — क्योंकि यहां की जीत या हार उनके नेतृत्व की दिशा तय करेगी।