जैसे-जैसे बिहार विधानसभा चुनाव अपने अंतिम चरणों की ओर बढ़ रहे हैं, राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) के भीतर मुख्यमंत्री चेहरे की घोषणा में देरी को लेकर चर्चाएं तेज हो गई हैं। हालांकि राजनीतिक अटकलें जारी हैं, लेकिन जनता दल (यूनाइटेड) का मानना है कि नीतीश कुमार ही अब भी गठबंधन के सबसे स्वाभाविक और मजबूत उम्मीदवार हैं।
जदयू के राष्ट्रीय महासचिव मनीष वर्मा के अनुसार, हाल के चरणों में महिला मतदाताओं की बढ़ती भागीदारी सरकार के प्रति उनके भरोसे को दर्शाती है। उन्होंने कहा, “महिलाओं की बढ़ी हुई भागीदारी बताती है कि नीतीश कुमार की नीतियों पर उनका विश्वास कायम है — चाहे वह महिला सशक्तिकरण हो या सामाजिक सुधार।”
करीब दो दशकों से बिहार की राजनीति का चेहरा रहे नीतीश कुमार के सामने एक तरफ सत्ता विरोधी लहर की चुनौती है, तो दूसरी तरफ विकास आधारित राजनीति का अवसर भी। उनके शासन में शिक्षा, महिला कल्याण और सामाजिक सुरक्षा योजनाओं पर विशेष जोर दिया गया। इन पहलों ने ग्रामीण और अर्ध-शहरी बिहार की तस्वीर बदलने में अहम भूमिका निभाई है।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि मुख्यमंत्री चेहरे की औपचारिक घोषणा में देरी से थोड़ी असमंजस की स्थिति जरूर बनी है, लेकिन नीतीश का प्रशासनिक अनुभव उन्हें गठबंधन का सबसे भरोसेमंद नेता बनाता है। एनडीए के लिए इस समय सबसे जरूरी है — संदेश की एकरूपता और विपक्ष द्वारा फैलाई जा रही अस्थिरता की धारणा का जवाब।
इस चुनाव की सबसे चर्चित बात महिलाओं की अभूतपूर्व भागीदारी रही है। शराबबंदी से लेकर आत्मनिर्भरता योजनाओं तक, जदयू ने नीतीश कुमार को “महिला हितैषी नेता” के रूप में प्रस्तुत किया है। राजनीतिक विशेषज्ञों का कहना है कि महिला मतदाता, जो जातीय समीकरणों से कम प्रभावित होती हैं, कई सीटों पर निर्णायक भूमिका निभा सकती हैं।
वर्मा ने “जीविका” महिला स्व-सहायता समूह और “मुख्यमंत्री कन्या उत्थान योजना” जैसी पहलों का उल्लेख करते हुए कहा, “यह सिर्फ शासन का विषय नहीं है, बल्कि सामाजिक परिवर्तन की प्रक्रिया है।”
एनडीए के भीतर जदयू और भाजपा का रिश्ता रणनीतिक संतुलन पर आधारित है। मुख्यमंत्री चेहरे की घोषणा में देरी को मतभेद नहीं, बल्कि रणनीति का हिस्सा माना जा रहा है। विपक्ष इस अवसर को गठबंधन की कमजोरी बताने में जुटा है, जबकि जदयू का दावा है कि नीतीश बिहार के हर वर्ग में स्वीकार्य नेता हैं।
जैसे-जैसे प्रचार अभियान समाप्ति की ओर है, जदयू का फोकस सुशासन, स्थिरता और महिला सशक्तिकरण पर है। वहीं, विपक्ष बेरोजगारी और कानून-व्यवस्था जैसे मुद्दों को प्रमुखता दे रहा है।
अब सवाल यह है कि क्या एनडीए मतदाताओं तक अपनी एकजुटता का संदेश प्रभावी ढंग से पहुँचा पाएगा। नीतीश कुमार की स्थिर नेतृत्व की छवि इस असमंजस को दूर करने में मददगार साबित हो सकती है। अगर महिला मतदाताओं का समर्थन वाकई वोटों में तब्दील हुआ, तो एक बार फिर नीतीश कुमार बिहार की राजनीति के सबसे मजबूत स्तंभ बनकर उभर सकते हैं।
