लखनऊ/दिल्ली: उत्तर प्रदेश की राजनीति में हलचल तब बढ़ गई जब दिल्ली में एनडीए सहयोगी दलों की अहम बैठक हुई, लेकिन उसमें भारतीय जनता पार्टी (BJP) शामिल नहीं हुई। इस घटनाक्रम ने राजनीतिक गलियारों में कयासों को हवा दे दी है।
घटना की पृष्ठभूमि
बैठक के दौरान उत्तर प्रदेश के मंत्री और निषाद पार्टी के अध्यक्ष संजय निषाद ने विधानसभा का घेराव करने की बात कही। उनका दावा था कि उत्तर प्रदेश की सत्ता की चाबी एनडीए के चार छोटे सहयोगी दलों के पास है। संजय निषाद के इस बयान ने सियासी हलकों में हलचल मचा दी।
विधानसभा में राजनीतिक उबाल
संजय निषाद के इस बयान को विपक्ष ने तुरंत लपक लिया। समाजवादी पार्टी और कांग्रेस नेताओं ने कहा कि यह एनडीए में अंदरूनी खींचतान का सबूत है। वहीं भाजपा नेताओं ने सफाई दी कि सहयोगियों के साथ उनका कोई “मतभेद या मनभेद” नहीं है।
सहयोगियों की रणनीति
छोटे सहयोगी दलों का मानना है कि आने वाले चुनावों में उनकी अहम भूमिका होगी। ओमप्रकाश राजभर की पार्टी और अनुप्रिया पटेल का दल भी बैठक में मौजूद रहा। सूत्रों का कहना है कि इन दलों ने अपने-अपने मुद्दों को मजबूती से रखा और भाजपा से ज्यादा सम्मान की मांग की।
भाजपा का रुख
भाजपा प्रवक्ताओं ने स्पष्ट किया कि पार्टी और उसके सहयोगियों के बीच तालमेल बरकरार है। उन्होंने कहा कि “एनडीए एकजुट है और 2024 में भी इसी ताकत के साथ मैदान में उतरेगा।”
निष्कर्ष
दिल्ली में हुई इस बैठक ने भाजपा और उसके सहयोगियों के रिश्तों को लेकर कई सवाल खड़े कर दिए हैं। जहां छोटे दल खुद को सत्ता संतुलन की चाबी बता रहे हैं, वहीं भाजपा लगातार संदेश देने की कोशिश कर रही है कि सब कुछ सामान्य है। आने वाले दिनों में यह देखना दिलचस्प होगा कि उत्तर प्रदेश की राजनीति किस करवट बैठती है।
