धामी सरकार का प्रस्ताव – मुस्लिम संगठनों में चिंता, धार्मिक अधिकारों के हनन का उठाया सवाल
उत्तराखंड की धामी सरकार ने हाल ही में एक नए शिक्षा विधेयक का मसौदा पेश किया है, जिसके तहत राज्य में मदरसा बोर्ड को समाप्त करने का प्रावधान है। साथ ही, अब तक सिर्फ मुस्लिम समाज तक सीमित अल्पसंख्यक शिक्षा लाभ को अन्य अल्पसंख्यक समुदायों तक भी पहुँचाने की तैयारी की जा रही है।
घटना की पृष्ठभूमि
अब तक मदरसा बोर्ड राज्य के मुस्लिम छात्रों की शिक्षा व्यवस्था और निगरानी का काम करता था। लेकिन सरकार का तर्क है कि शिक्षा का दायरा सभी अल्पसंख्यकों तक बढ़ना चाहिए। यही वजह है कि प्रस्तावित क़ानून में मदरसा बोर्ड को भंग कर, उसकी ज़िम्मेदारी सामान्य शिक्षा विभाग को सौंपने की योजना बनाई गई है।
राजनीतिक हलचल और प्रतिक्रियाएँ
मुस्लिम संगठनों ने इस प्रस्ताव पर गंभीर आपत्ति जताई है। उनका कहना है कि संविधान के अनुच्छेद 26 और 30 के तहत धार्मिक समुदायों को अपने शैक्षणिक संस्थान चलाने और धार्मिक मामलों का प्रबंधन करने का अधिकार प्राप्त है। संगठनों का आरोप है कि यह विधेयक इन अधिकारों को सीमित कर सकता है।
वहीं, सरकार का कहना है कि यह कदम “समान अवसर और सर्वजन हित” के सिद्धांत पर आधारित है और किसी भी समुदाय के अधिकारों को कम नहीं करेगा।
निष्कर्ष
धामी सरकार के इस फैसले ने राज्य की राजनीति में नई बहस छेड़ दी है। एक ओर इसे शिक्षा में समानता लाने वाला कदम कहा जा रहा है, तो दूसरी ओर मुस्लिम संगठनों को इसमें अपने अधिकारों के क्षरण की आशंका नज़र आ रही है। अब नज़र इस पर रहेगी कि विधानसभा में यह बिल किस रूप में पारित होता है और अदालतों में इसे किस तरह चुनौती दी जाती है।