
उत्तराखंड अधीनस्थ सेवा चयन आयोग (UKSSSC) परीक्षा में कथित पेपर लीक के विरोध ने एक युवा नेता को सुर्खियों में ला दिया है: बॉबी पंवार। कोचिंग सेंटरों और प्रतियोगी परीक्षाओं की लंबी तैयारी के अपने अनुभव को आधार बनाकर पंवार आज बेरोज़गार युवाओं की आवाज़ बन चुके हैं।
उत्तराखंड के पहाड़ी क्षेत्र से आने वाले पंवार एक साधारण परिवार से ताल्लुक रखते हैं। स्वयं प्रतियोगी परीक्षाओं के उतार-चढ़ाव का सामना करने के बाद, वे धीरे-धीरे छात्र अधिकारों और बेरोज़गारी से जुड़े आंदोलनों से जुड़ गए। जमीनी स्तर पर युवाओं से जुड़ाव और सीधे संवाद ने उन्हें विश्वसनीयता दिलाई।
2024 के लोकसभा चुनावों में उन्होंने टिहरी गढ़वाल सीट से किस्मत आज़माई। जीत न मिलने के बावजूद तीसरे स्थान पर आकर उन्होंने यह साबित किया कि युवा वोटरों के बीच उनकी पकड़ गहरी है। इस नतीजे ने उन्हें केवल आंदोलनकारी ही नहीं, बल्कि एक उभरते राजनीतिक चेहरे के रूप में भी पहचान दिलाई।
हालिया पेपर लीक घटना ने एक बार फिर युवाओं के गुस्से को भड़का दिया है। देहरादून से लेकर कई अन्य कस्बों तक विरोध प्रदर्शनों का विस्तार हो चुका है। परीक्षार्थी और उनके परिवार सड़क पर उतरकर सख्त कार्रवाई की मांग कर रहे हैं। इन प्रदर्शनों के केंद्र में बॉबी पंवार मौजूद हैं, जो रैलियों को संबोधित कर रहे हैं, मार्च निकाल रहे हैं और अधिकारियों पर दबाव बना रहे हैं।
प्रदर्शनकारियों की मांग है कि विवादित परीक्षा रद्द की जाए, दोषियों पर कड़ी कार्रवाई हो और भर्ती प्रक्रियाओं में पारदर्शिता सुनिश्चित की जाए। पंवार की मौजूदगी ने आंदोलन को एक चेहरा दिया है, जिसे कई लोग बिखरी हुई आवाज़ों को जोड़ने वाला मानते हैं।
राज्य सरकार ने इस मामले को गंभीर भरोसेघात बताते हुए जांच शुरू कर दी है। कुछ अधिकारियों को निलंबित किया गया है और एक विशेष जांच दल गठित कर दिया गया है। सरकार ने संकेत दिए हैं कि भविष्य में सख्त क़ानून बनाकर नकल और भ्रष्टाचार पर रोक लगाई जाएगी।
फिर भी सवाल बने हुए हैं कि बार-बार परीक्षाओं में लीक क्यों हो रहे हैं और मौजूदा सिस्टम इतने कमजोर क्यों साबित हो रहे हैं। आलोचकों का कहना है कि जब तक ढांचागत सुधार नहीं होंगे, तब तक ऐसी घटनाएँ जारी रहेंगी।
कई अभ्यर्थियों के लिए यह आंदोलन केवल एक परीक्षा तक सीमित नहीं है, बल्कि वर्षों से चली आ रही निराशा का परिणाम है। उम्मीदवारों का कहना है कि वे सालों की मेहनत करते हैं, लेकिन भ्रष्टाचार और अनुचित तरीकों से उनका भविष्य छिन जाता है। देहरादून में हुए एक विरोध में एक अभ्यर्थी ने कहा, “हम हर साल एक ही लड़ाई नहीं लड़ सकते। हमें स्थायी बदलाव चाहिए, सिर्फ़ वादे नहीं।”
पंवार भी अपने भाषणों में इन्हीं भावनाओं को दोहराते हैं। उनका कहना है कि यह आंदोलन राजनीति का हिस्सा नहीं बल्कि न्याय और सम्मान की लड़ाई है।
पंवार का उदय उत्तराखंड की युवा राजनीति में बदलाव का संकेत है। उनकी यात्रा — एक साधारण अभ्यर्थी से जन-आंदोलन के नेता तक — बताती है कि युवा अब उन चेहरों पर भरोसा कर रहे हैं जिनसे वे खुद को जोड़ पाते हैं। विश्लेषकों का मानना है कि आने वाले वर्षों में ऐसे नेता राज्य की राजनीति की दिशा तय कर सकते हैं।
फिलहाल आंदोलन जारी है और निगाहें सरकार की प्रतिक्रिया पर टिकी हैं। युवाओं की मांगें क्या ठोस सुधारों में बदलेंगी, यह समय बताएगा। वहीं पंवार के लिए यह अवसर और चुनौती दोनों है — एक असली नेता के रूप में अपनी छवि को मजबूत करने का और यह साबित करने का कि उनका आंदोलन ठोस बदलाव ला सकता है।