गया जिले की इमामगंज विधानसभा सीट इस बार सिर्फ एक निर्वाचन क्षेत्र नहीं, बल्कि राजनीतिक प्रतिष्ठा की लड़ाई का केंद्र बन गई है। पार्टी-सत्ता, सामाजिक मुद्दे और शराब निषेध विवादों के बीच इस सीट पर जीतन राम मांझी की प्रतिष्ठा दांव पर नजर आ रही है। मांझी की पार्टी हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा (सेकुलर) (HAM (S)) ने इस सीट से अपनी उम्मीदवार और मांझी की बहू दीपा कुमारी मांझी को उतारा है, जबकि विपक्षी गठबंधन ने इस पर कड़ी चुनौती पेश की है।
इमामगंज विधानसभा क्षेत्र (नंबर 227) SC आरक्षित सीट है जो गया जिले में आता है। पिछली विधानसभा चुनावों में मांझी इस सीट पर लगातार विजय दर्ज कर चुके हैं। वर्ष 2024 के उपचुनाव में दीपा कुमारी मांझी ने यहाँ जीत दर्ज की थी जब मांझी लोकसभा में चले गए थे। उन्होंने करीब 5,945 मतों की बढ़त से जीत दर्ज की थी।
इसलिए इस बार इस सीट पर हार-जीत केवल एक सीट तक सीमित नहीं है — यह मांझी की राजनीतिक स्थिति, उनके प्रभाव और HAM(S) की जारी पकड़ का भी परीक्षण है।
चुनावी माहौल में सबसे बड़ा सवाल है शराब निषेध नीति-शुष्क बेल्ट के सवाल का। इमामगंज में मतदाताओं की बड़ी संख्या इस नीति को फक्त कागज़ी बंदी बता रही है। एक मतदाता का कहना है: “यह बैन तो कागज़ पर है, वास्तव में शराब कहीं से मिल जाती है।”
शराब निषेध के बहाने निष्क्रियता, तस्करी और अवैध बिक्री पर भारी नाराजगी दिख रही है। इस सामाजिक असंतोष को विपक्ष ने इस सीट के अभियान वाहक के रूप में उठाया है।
दीपा कुमारी मांझी के लिए चुनौती स्पष्ट है। उन्होंने अपनी जीत को दोहराने का प्रयास किया है, लेकिन इस बार विपक्षी उम्मीदवारों ने यह मुद्दा जोर-शोर से उठाया है कि शासन-सत्ता ने शराब बैन के पीछे वास्तविक क्रियान्वयन न कर जनता को राहत नहीं दी है। इस तरह वोटरों के बीच निराशा और आक्रोश का मिजाज बन चुका है।
मांझी की प्रतिष्ठा वहाँ-के-वहाँ खड़ी है। अगर उन्होंने इस सीट पर नाराज मतदाताओं को शांत कर लिया, तो उनका प्रभाव बरकरार रहेगा। लेकिन यदि घेरा तंग हुआ, तो उनकी राजनीतिक छवि और HAM(S) की स्थिति कमजोर पड़ सकती है।
एक राजनीतिक विशेषज्ञ ने कहा है: “यह मुकाबला सिर्फ एक उम्मीदवार या दल का नहीं, बल्कि सामाजिक भरोसे का परीक्षण है। इमामगंज जैसे क्षेत्र में शराब बैन और विकास के बीच संतुलन बनाना बड़ी चुनौती है।”
चुनाव परिणामों से यह स्पष्ट होगा कि क्या मांझी की रणनीति सफल हुई या विकल्पों-वाले उम्मीदवारों ने जमीन खोली। HAM(S) को इस बार यह दिखाना है कि वे सिर्फ परंपरागत वोट बैंक तक ही सीमित नहीं हैं, बल्कि स्थानीय नाराजगी-मूल मुद्दों से निपटने में सक्षम हैं।
वोटिंग के बाद यह देखा जाएगा कि शराब निषेध का मुद्दा कितना मतदान व्यवहार को प्रभावित कर पाया। इस सीट पर सामाजिक-आर्थिक बदलाव और विकास-विरोधी प्रतिक्रिया दोनों की झलक मिल रही है।
इमामगंज की खिचड़ी में शराब निषेध, सामाजिक असंतोष, प्रतिष्ठा-दांव और पार्टी-रणनीति सभी एक साथ उभरे हैं। मांझी इस पर ताजनवीज़ चुनौतियों का सामना कर रहे हैं। यदि दीपा कुमारी मांझी इस बार जीतती हैं, तो उनकी और HAM(S) की राजनीतिक स्थिति मजबूत होगी। लेकिन हार की स्थिति में यह इलाके का मूड, निषेध नीति की छवि और मांझी की प्रतिष्ठा सब पर प्रभाव डालेगा।
