पूर्व केंद्रीय मंत्री आर.के. सिंह ने एक बार फिर भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के खिलाफ गंभीर आरोप लगाकर राजनीतिक हलकों में हलचल मचा दी है। बिहार के इस वरिष्ठ नेता ने दावा किया कि पार्टी के कुछ नेताओं ने 2024 लोकसभा चुनावों में उन्हें हराने की साजिश रची थी क्योंकि उन्होंने “पारदर्शिता और ईमानदार शासन” की वकालत की थी।
पत्रकारों से बातचीत में सिंह ने कहा, “अगर भाजपा चाहे तो मुझे निकाल दे, लेकिन मैं सच बोलना नहीं छोड़ूंगा। मैंने हमेशा स्वच्छ शासन का समर्थन किया है, और यह मेरा सिद्धांत रहेगा।”
सिंह ने आरोप लगाया कि भागलपुर पावर प्लांट से जुड़े ठेके में अनियमितताओं की शिकायत करने के बाद उन्हें नजरअंदाज किया गया। उनका कहना है कि कुछ राज्य स्तरीय नेताओं ने जानबूझकर उनकी बातों को दबाया। वहीं, अदाणी पावर ने सभी आरोपों को खारिज करते हुए कहा है कि “सभी प्रक्रियाएं नियामकीय पारदर्शिता के साथ पूरी की गईं।”
राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार, यह विवाद भाजपा के अंदर बढ़ती असंतोष की झलक देता है, जो चुनावी नतीजों के बाद से कई राज्यों में देखा जा रहा है।
राजनीतिक विशेषज्ञ डॉ. मीरा चौधरी ने कहा, “आर.के. सिंह के बयान इस बात की ओर इशारा करते हैं कि कुछ वरिष्ठ नेता खुद को पार्टी के भीतर अलग-थलग महसूस कर रहे हैं। भाजपा नेतृत्व को इन चिंताओं पर संवाद बढ़ाने की जरूरत है।”
पार्टी के भीतर कुछ सूत्रों का कहना है कि सिंह की नाराजगी उनके राजनीतिक प्रभाव घटने का परिणाम हो सकती है। एक वरिष्ठ भाजपा नेता ने नाम न छापने की शर्त पर कहा, “पार्टी सामूहिक निर्णयों से चलती है। व्यक्तिगत असंतोष से नीति नहीं बदलती, लेकिन ऐसे बयान निश्चित रूप से दुर्भाग्यपूर्ण हैं।”
भाजपा की ओर से अब तक कोई कठोर प्रतिक्रिया नहीं आई है। पार्टी प्रवक्ता ने कहा, “नेतृत्व इस मुद्दे की समीक्षा करेगा। हमारा ध्यान शासन और जनता के हितों पर केंद्रित है।”
फिलहाल, यह देखना दिलचस्प होगा कि आर.के. सिंह का यह रुख उन्हें पार्टी से बाहर ले जाएगा या किसी सुलह का रास्ता निकलेगा। पर इतना तय है कि उनके बयान ने भाजपा के भीतर जवाबदेही और आंतरिक लोकतंत्र पर नई बहस छेड़ दी है।
