
बिहार की राजनीति में विपक्षी दलों के बीच तनाव बढ़ गया है। ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (AIMIM) ने राष्ट्रीय जनता दल (RJD) पर “अहंकार” का आरोप लगाते हुए चेतावनी दी है कि अगर उसे नजरअंदाज किया गया, तो आरजेडी को इसका राजनीतिक खामियाजा भुगतना पड़ेगा।
असदुद्दीन ओवैसी के नेतृत्व वाली एआईएमआईएम ने चार सीटों पर उम्मीदवारों की घोषणा की है और आगामी विधानसभा चुनाव में 243 में से 50 सीटों पर चुनाव लड़ने की इच्छा जताई है।
एआईएमआईएम का कहना है कि उसने आरजेडी के साथ गठबंधन की कोशिश की थी, लेकिन पार्टी नेतृत्व ने उसे दरकिनार कर दिया। बिहार एआईएमआईएम प्रमुख अख्तरुल इमान ने कहा, “अगर आरजेडी इसी तरह अहंकार दिखाती रही और समान विचारधारा वाले दलों का सम्मान नहीं करेगी, तो उसे इसका राजनीतिक नुकसान उठाना पड़ेगा। हम गठबंधन के खिलाफ नहीं हैं, लेकिन स्वाभिमान की कीमत पर नहीं।”
राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार, एआईएमआईएम का यह रुख बिहार में मुस्लिम वोट बैंक को प्रभावित कर सकता है, जो अब तक आरजेडी का पारंपरिक समर्थन आधार माना जाता रहा है। 2020 के विधानसभा चुनाव में एआईएमआईएम ने सीमांचल क्षेत्र में पांच सीटें जीतकर उल्लेखनीय प्रदर्शन किया था, हालांकि बाद में उसके चार विधायक आरजेडी में शामिल हो गए थे।
विशेषज्ञों का मानना है कि यह विवाद बिहार में अल्पसंख्यक मतदाताओं के बीच वर्चस्व की लड़ाई को दर्शाता है। तेजस्वी यादव के नेतृत्व में आरजेडी जहां बीजेपी-जेडीयू गठबंधन के खिलाफ मुख्य विपक्षी ताकत बनने की कोशिश में है, वहीं एआईएमआईएम सीमांचल से आगे अपनी उपस्थिति मजबूत करना चाहती है।
एआईएमआईएम ने हालांकि गठबंधन के लिए दरवाजा पूरी तरह बंद नहीं किया है। पार्टी का कहना है कि अगर आरजेडी नेतृत्व सम्मानजनक बातचीत के लिए आगे आता है, तो वह चर्चा के लिए तैयार है।
आरजेडी नेताओं ने इस मुद्दे पर अभी तक कोई प्रत्यक्ष टिप्पणी नहीं की है। उनका कहना है कि सीट बंटवारे का फैसला चुनाव के नजदीक समय पर लिया जाएगा।
बिहार के राजनीतिक परिदृश्य में यह खींचतान विपक्षी एकता की नाजुक स्थिति को उजागर करती है। आने वाले महीनों में यह देखना दिलचस्प होगा कि एआईएमआईएम और आरजेडी के बीच यह मतभेद स्थायी राजनीतिक पुनर्संरेखण की ओर बढ़ता है या चुनाव से पहले सुलझ जाता है।