
भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने झारखंड में बड़ा राजनीतिक बदलाव करते हुए राज्यसभा सांसद आदित्य प्रसाद साहू को राज्य इकाई का कार्यकारी अध्यक्ष नियुक्त किया है। यह घोषणा भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जे.पी. नड्डा ने की। माना जा रहा है कि यह कदम राज्य में पार्टी की जमीनी पकड़ मजबूत करने और आगामी चुनावों की तैयारी के लिए उठाया गया है।
साहू, जो ओबीसी (अन्य पिछड़ा वर्ग) समुदाय से आते हैं, ने रवींद्र कुमार राय की जगह ली है। उनकी नियुक्ति को भाजपा द्वारा झारखंड के जातीय समीकरणों को ध्यान में रखते हुए किया गया एक रणनीतिक निर्णय माना जा रहा है, जहां सामाजिक आधार अक्सर चुनावी नतीजों को प्रभावित करता है।
आदित्य प्रसाद साहू का राजनीतिक सफर जमीनी स्तर से शुरू हुआ था। 1980 के दशक के अंत में पार्टी के सक्रिय कार्यकर्ता के रूप में शुरुआत करने वाले साहू ने धीरे-धीरे संगठनात्मक सीढ़ियां चढ़ीं और राज्य इकाई के महासचिव के रूप में भी सेवाएं दीं। उनकी तरक्की भाजपा की उस नीति को दर्शाती है, जिसमें संगठनात्मक क्षमता और जनसंपर्क रखने वाले नेताओं को प्राथमिकता दी जाती है।
राजनीति से परे साहू का शैक्षणिक पृष्ठभूमि भी उल्लेखनीय है। वे पूर्व में कॉलेज व्याख्याता रह चुके हैं, जिसे उनके व्यावहारिक और बौद्धिक संतुलन का उदाहरण माना जाता है। 2022 में राज्यसभा सांसद बनने के बाद से वे संसदीय कार्यों में सक्रिय रहे हैं और प्रशासनिक तथा विधायी दोनों क्षमताओं के लिए पहचाने जाते हैं।
भाजपा नेताओं को विश्वास है कि साहू की नियुक्ति से कार्यकर्ताओं में नया उत्साह आएगा। वरिष्ठ नेता बाबूलाल मरांडी ने कहा, “आदित्य साहू का संगठनात्मक अनुभव और जमीनी पकड़ पार्टी को झारखंड में विभिन्न समुदायों से जोड़ने और अपनी ताकत बढ़ाने में मदद करेगी।”
झारखंड की राजनीति हमेशा प्रतिस्पर्धी रही है। जहां झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) आदिवासी समुदाय के बीच मजबूत है, वहीं कांग्रेस गठबंधन की रणनीति पर काम कर रही है। भाजपा के लिए ओबीसी मतदाताओं को साधना और आंतरिक चुनौतियों से निपटना बेहद जरूरी माना जा रहा है। विश्लेषकों का मानना है कि साहू का नेतृत्व पार्टी को एंटी-इनकंबेंसी का मुकाबला करने और युवाओं व ग्रामीण मतदाताओं तक पहुंच बढ़ाने में मदद कर सकता है।
यह बदलाव भाजपा की आगामी लोकसभा और विधानसभा चुनावों की तैयारी को भी दर्शाता है। झारखंड में 14 लोकसभा सीटें और 81 विधानसभा सीटें हैं, जिससे यह राज्य एक अहम चुनावी अखाड़ा बना हुआ है। एक अपेक्षाकृत युवा और ओबीसी पृष्ठभूमि वाले नेता को आगे लाकर भाजपा ने सामाजिक प्रतिनिधित्व और संगठनात्मक ताकत का मेल करने की कोशिश की है।
अब सबकी निगाहें आदित्य प्रसाद साहू पर होंगी कि वे भाजपा की झारखंड इकाई को कैसे एकजुट करते हैं और राज्य की बदलती राजनीतिक परिस्थितियों में पार्टी को कितना मजबूत बना पाते हैं।