
अगस्त 2019 में अनुच्छेद 370 हटाए जाने के बाद जम्मू-कश्मीर का विभाजन कर दो केंद्र शासित प्रदेश बनाए गए—जम्मू-कश्मीर और लद्दाख। इस फैसले को कई जगहों पर राष्ट्रीय एकीकरण की दिशा में बड़ा कदम बताया गया, लेकिन लद्दाख से अब असंतोष की आवाजें उठ रही हैं। यहां के लोग स्वायत्तता, रोजगार और शासन व्यवस्था को लेकर चिंता जता रहे हैं।
लेह एपेक्स बॉडी के सह-अध्यक्ष और केंद्र सरकार से वार्ता करने वाले प्रमुख नेताओं में से एक, छेरिंग दोरजे लकरुक ने हाल ही में अपनी चिंता व्यक्त की। उन्होंने कहा, “हम अनुच्छेद 370 को कोसा करते थे, लेकिन उसने हमें सुरक्षा दी थी। अब लद्दाख पूरे देश के लिए खोल दिया गया है और हमारे लोग असुरक्षित महसूस कर रहे हैं।”
अनुच्छेद 370 और अनुच्छेद 35ए के तहत लद्दाख को ज़मीन और नौकरियों पर स्थानीय अधिकार प्राप्त थे। इनके हटने के बाद लोगों को आशंका है कि बाहरी आबादी और पूंजी के आने से उनकी जमीन और रोज़गार पर खतरा बढ़ जाएगा। लेह और कारगिल की स्वायत्त परिषदें (LAHDC) स्थानीय प्रशासन का आधार रही हैं, लेकिन लकरुक का कहना है कि ये परिषदें “लगभग निष्क्रिय” हो चुकी हैं।
लद्दाख का दूसरा बड़ा मुद्दा है बेरोजगारी। यहां के कई छात्र कठिनाई से पढ़ाई पूरी करते हैं, लेकिन नौकरियों की कमी से जूझते हैं। लकरुक ने कहा, “जिन युवाओं ने मुश्किल से पढ़ाई पूरी की है, उन्हें नौकरियां नहीं मिल रही हैं। कुछ को कॉन्ट्रैक्ट पर रखा गया है, जो एक तरह की गुलामी है।”
लद्दाख की अर्थव्यवस्था पर्यटन और सरकारी नौकरियों पर निर्भर है। पर्यटन ने हाल के वर्षों में तेजी पकड़ी है, लेकिन इसके साथ पर्यावरणीय और सांस्कृतिक चुनौतियाँ भी सामने आई हैं।
इन चिंताओं के समाधान के लिए लेह एपेक्स बॉडी और कारगिल डेमोक्रेटिक अलायंस लगातार केंद्र सरकार से संवैधानिक सुरक्षा की मांग कर रहे हैं। उनकी प्रमुख मांग है कि लद्दाख को संविधान की छठी अनुसूची के अंतर्गत लाया जाए, जिससे उन्हें ज़मीन, संसाधन और सांस्कृतिक अधिकारों पर अधिक स्वायत्तता मिले।
हालांकि केंद्र सरकार इस मुद्दे पर सतर्क है। विशेषज्ञों का मानना है कि छठी अनुसूची लागू करने से लद्दाख को पूर्वोत्तर राज्यों जैसे विशेष अधिकार मिल सकते हैं, लेकिन इससे अन्य क्षेत्रों की मांगें भी बढ़ सकती हैं।
लद्दाख की सिविल सोसायटी भी पर्यावरण और जलवायु संकट को लेकर आवाज़ उठा रही है। प्रसिद्ध शिक्षाविद और पर्यावरण कार्यकर्ता सोनम वांगचुक ने हाल ही में कहा, “यह केवल स्वायत्तता का सवाल नहीं है, बल्कि जलवायु परिवर्तन और अव्यवस्थित विकास के बीच अस्तित्व का सवाल है।”
केंद्र सरकार का तर्क है कि लद्दाख को सीधे शासन, बुनियादी ढांचे और वित्तीय सहयोग का फायदा मिल रहा है। लेकिन स्थानीय नेताओं का कहना है कि बिना ठोस संवैधानिक सुरक्षा और सहभागिता के ये फायदे अधूरे हैं।
फिलहाल, लद्दाख का भविष्य अनिश्चितता में है। विकास, प्रतिनिधित्व और पहचान संरक्षण के बीच संतुलन बनाना यहां सबसे बड़ी चुनौती बन चुका है।