बिहार की सियासत एक बार फिर गरमा गई है। विधानसभा चुनाव के पहले चरण के लिए नामांकन की अंतिम तिथि 17 अक्टूबर तय है, लेकिन उससे पहले ही विपक्षी महागठबंधन में सीट बंटवारे को लेकर मतभेद अपने चरम पर हैं। कांग्रेस और राष्ट्रीय जनता दल (RJD) के बीच अब तक सहमति नहीं बन सकी है। कांग्रेस जहां कम से कम 65 सीटों पर चुनाव लड़ने की मांग पर अड़ी है, वहीं RJD 55 सीटों से अधिक देने के मूड में नहीं दिख रही है।
यह स्थिति तब है जब दोनों ही दल आगामी चुनाव को सत्तारूढ़ गठबंधन के खिलाफ एकजुटता की परीक्षा मान रहे हैं। परंतु सीटों की गणित ने गठबंधन की एकता पर सवाल खड़े कर दिए हैं।
बिहार में दो चरणों में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं। पहले चरण के लिए नामांकन की अंतिम तारीख नजदीक है और राजनीतिक दल उम्मीदवारों की सूची तैयार करने में जुटे हैं। सत्तारूढ़ एनडीए ने पहले ही सीटों का बंटवारा कर लिया है और प्रचार रणनीति भी शुरू कर दी है, जबकि विपक्षी दलों में अब तक सीटों पर सहमति नहीं बन पाई है।
2020 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने 70 सीटों पर चुनाव लड़ा था, लेकिन इस बार पार्टी अपने पिछले प्रदर्शन को देखते हुए 65 सीटों पर दावा ठोक रही है। दूसरी ओर, RJD का कहना है कि इस बार गठबंधन में अन्य छोटे दल भी शामिल हैं, जिनके लिए कुछ सीटें छोड़नी पड़ेंगी।
सूत्रों के अनुसार, दोनों दलों के बीच कई दौर की बैठकें हो चुकी हैं, लेकिन किसी में भी ठोस नतीजा नहीं निकल पाया। RJD का तर्क है कि पिछली बार कांग्रेस का प्रदर्शन उम्मीद से कमजोर रहा था, इसलिए सीटों की संख्या में कमी स्वाभाविक है। वहीं, कांग्रेस का कहना है कि गठबंधन की मजबूती के लिए समान और सम्मानजनक साझेदारी जरूरी है।
एक वरिष्ठ कांग्रेस नेता ने कहा, “हम गठबंधन के साथ हैं, लेकिन पार्टी का सम्मान और संगठन की ताकत बनाए रखना भी ज़रूरी है। बिहार में कांग्रेस की अपनी पहचान और जनाधार है।”
RJD के एक नेता ने जवाब में कहा, “सीटें सिर्फ आंकड़ों के आधार पर नहीं, बल्कि जीत की संभावनाओं के हिसाब से तय होंगी। हमारा लक्ष्य सरकार बनाना है, न कि केवल तालमेल दिखाना।”
महागठबंधन में शामिल वामपंथी दल और अन्य क्षेत्रीय सहयोगी भी अपने हिस्से की सीटों को लेकर दबाव बनाए हुए हैं। इन दलों का कहना है कि अगर कांग्रेस और RJD अपने मतभेद दूर नहीं करते, तो चुनावी रणनीति प्रभावित होगी। कुछ नेताओं ने यहां तक संकेत दिए हैं कि अगर समझौता नहीं हुआ तो वे अलग राह चुनने पर विचार करेंगे।
विशेषज्ञों का मानना है कि यह गतिरोध विपक्ष की एकजुटता के लिए बड़ा झटका साबित हो सकता है। यदि अंतिम क्षण तक सहमति नहीं बनती, तो उम्मीदवारों की घोषणा और प्रचार की योजना दोनों में विलंब होगा। इससे मतदाताओं के बीच भ्रम की स्थिति बन सकती है।
राजनीतिक विश्लेषक संजय कुमार के अनुसार, “बिहार की राजनीति में गठबंधन सिर्फ सीटों का समीकरण नहीं, बल्कि भरोसे का भी सवाल है। अगर यह भरोसा टूटता है, तो विपक्षी एकता का पूरा ढांचा कमजोर हो सकता है।”
अब जबकि समय बहुत कम बचा है, सभी निगाहें कांग्रेस और RJD के शीर्ष नेतृत्व पर टिकी हैं। यह देखना दिलचस्प होगा कि दोनों दल अपनी-अपनी राजनीतिक प्राथमिकताओं से ऊपर उठकर समझौते पर पहुंच पाते हैं या नहीं। अगर स्थिति यथावत रही, तो कांग्रेस स्वतंत्र रूप से कुछ सीटों पर उतर सकती है, जिससे विपक्षी मतों का विभाजन होना तय है।
17 अक्टूबर तक नामांकन की प्रक्रिया पूरी हो जाएगी। ऐसे में आने वाले तीन दिन बिहार के राजनीतिक भविष्य को काफी हद तक तय कर सकते हैं।
