-राजनीति की अंतर्कथा-
-सारण लोकसभा का टिकट मिला था उपेन्द्र चौहान को, लालू ने लालबाबू राय को दुबारा सिम्बल दिलवा दिया
1990 का दौर था। कांग्रेस के अवसान और गैर कांग्रेसवाद की सियासी हवाएं बदलाव के कई मिथक रच रही थी। नए सियासी नायकों को लेकर तरह-तरह के कथानक जनता के बीच रचे जा रहे थे। लेकिन क्या लालू जैसे नायक विचारधारा की खोल में छिपकर अपने नए सियासी अखाड़े के पहलवान तैयार कर रहे थे! इसी को लेकर हमने बिहारी राजनीति की अंतर्कथा खंगालने की कोशिश की है।
राजनीति गुरु की टीम ने प्रदेश के पुराने नेताओं से बात कर, तथ्यों की पुष्टि करा कर अपने पाठकों के लिए कई ऐसे सियासी किस्से ढूंढ निकाले, जो उस दौर की राजनीति को समझने में मदद करते हैं। तब जनता दल की हवा थी। वीपी सिंह की जनमोर्चा जनता दल का स्वरूप ले चुकी थी। वीपी प्रधानमंत्री बन चुके थे। बिहार में जनता दल के प्रदेश अध्यक्ष रामसुन्दर दास से 3 वोटों से जीतकर लालू प्रसाद बिहार के सीएम बन चुके थे। बिहार की राजनीति के कई सारे समीकरण टूट गये थे। रामसुन्दर दास के समर्थकों को लालू प्रसाद या तो अपने गुट में शामिल कर चुके थे या उन्हें सियासी तौर पर धकियाने में लगे थे।
लालू के सीएम बनने से खाली हुई छपरा सीट (अब इसे सारण संसदीय क्षेत्र कहा जाता है) पर मध्यावधि चुनाव होना था। युवा जनता दल के तेज़ तर्रार नेता और रामसुन्दर दास के करीबी सहयोगी उपेन्द्र चौहान ने अजित सिंह, रामकृष्ण हेगड़े, सुरेन्द्र मोहन और मधु दंडवते के सामने छपरा से चुनाव लड़ने की अपनी इच्छा जाहिर की। उपेन्द्र चौहान जन मोर्चा के दिनों से वीपी सिंह से जुड़े थे। यूथ विंग के जरिये वीपी का पटना में कार्यक्रम कराकर राजा साहेब के नजदीकी हो चुके थे। ऐसे में उपेन्द्र ने विश्वनाथ प्रताप सिंह के दरबार तक अपनी बात पहुंचाई। राजा साहब मान गए और तत्कालीन जनता दल अध्यक्ष एसआर बोम्मई को कहकर उपेन्द्र की छपरा सीट से उम्मीदवारी फाइनल हो गयी। उपेन्द्र चौहान अपने चुनाव प्रचार में लग गए।
यहीं से दूसरी राजनीति शुरू हो गयी। लालू ने इसे प्रतिष्ठा का प्रश्न बना लिया। वो वीपी सिंह के पास पहुंचे और सियासी ड्रामा करके उन्हें इस बात पर मना लिया कि उपेन्द्र को वो विधान परिषद भेज देंगे। इस तरह लालू अपने करीबी लालबाबू राय को सिंबल दिलाने में कामयाब हो गए।
उनदिनों नामांकन वापसी के आखिरी दिन पार्टी का सिंबल जमा होता था। व्यास जी तब छपरा के जिलाधिकारी थे। आखिरी दिन उपेन्द्र जब सिंबल जमा करने पहुंचे तो स्टेट प्लेन से मुख्यमंत्री के प्रधान सचिव मुकुंद प्रसाद भी लालबाबू का सिंबल लेकर पहुंचे। तय हुआ कि लालबाबू राय ही जनता दल के अधिकृत उम्मीदवार होंगे।
ऐसी होती ही सियासी अन्तः कथाएं। नेताओं को पता भी नहीं होता था और उनका पत्ता साफ़।