उदय कुमार चौहान
झारखंड के कई सियासी सूरमा कभी राजनीति के सूर्य थे, चमकते थे, उनके आस-पास प्रशंसकों की भीड़ थी। पर आज कोई नहीं जानता कि वह कहां हैं! किस हाल में हैं! यही राजनीति है। ऐसे में राजनीति गुरु ने ऐसे गुमनाम सियासी सूरमाओं की वर्तमान स्थिति को खंगालने की कोशिश की है। आप भी ऐसे लोगों के बारे में जानिये...और यह भी जानिये कि ऐसा क्यों हुआ!
झारखंड की राजनीति में कभी रामचंद्र केसरी की जो चमक थी अब वो फीकी पड़ती दिख रही है, हालांकि अभी भी वो झाविमो का दामन थाम कर सियासी जमीन मजबूत करने की कोशिश कर रहे हैं पर अब वो बात कहां जब झारखंड अलग राज्य बनने के बाद संसदीय कार्य और जलसंसाधन विभाग के मंत्री बनने के बाद थी। उस वक्त रामचंद्र केसरी की ठसक देखते ही बनती थी। लेकिन उसके बाद उनका सियासी सफर हिचकोले खाने लगा।
देखा जाय तो राज्य गठन के बाद कई राजनीतिज्ञों के किस्मत का सितारा बुलंदियों पर था, पर सियासी उठा-पटक ने कितनों को हाशिए पर डाल दिया। रामचंद्र केसरी का सफर भी काफी उतार-चढ़ाव भरा रहा, फिलहाल वे बाबूलाल मरांडी के कंधे का सहारा लेकर राजनीतिक वैतरणी पार करने की जुगत में हैं। 2004 में समता पार्टी का दामन छोड़कर राजद की लालटेन थामी लेकिन राजद ने उन्हें पलामू से एकबारगी साहेबगंज भेज दिया। जिसका खामियाजा उन्हें भुगतना पड़ा, वहां से उन्हें हार का मुंह तो देखना ही पड़ा लेकिन इसके बाद वे लगातार जनाधार के लिए कई राजनीतिक दलों का परिक्रमा कर चुके हैं। अब देखना है कि बाबूलाल उनके राजनीतिक कैरियर को कितना संवार पाते हैं।