नए साल में मार्च तक होने वाले राज्यसभा चुनाव के लिए राजद-कांग्रेस गठबंधन ने यदि एकजुट रणनीति तय की तो वह लाभ में रहेगा। इस बार जो 7 सीटें खाली हो रही हैं वे सभी अभी एनडीए के पास हैं। शरद यादव की सीट पर उपचुनाव होगा। लिहाजा यह सीट तो फिर एनडीए के पास चली ही जाएगी लेकिन विधायकों की संख्या के हिसाब से शेष 6 सीटों में आधे पर ही एनडीए की हिस्सेदारी बन रही है। राजद-कांग्रेस एकजुट रहे तो 3 सीटें निकाल लेंगे। 2 अप्रैल को राज्यसभा की सीटें खाली हो रही हैं। एक सीट पर उपचुनाव और 6 सीटों के लिए चुनाव एक साथ होना है।
देखा जाय तो 6 सीटों के चुनाव में एक उम्मीदवार को जिताने के लिए कम से कम 35 विधायकों के वोट की जरूरत होगी। एनडीए खेमे में जदयू सबसे बड़ी पार्टी है और उसके पास 71 विधायक हैं। भाजपा ने विधानसभा चुनाव में 53 सीटें जीती थी लेकिन भभुआ के विधायक आनंद भूषण पांडेय का निधन हो जाने से विधायकों की संख्या 52 ही बची। लोजपा और रालोसपा के पास 2-2 विधायक हैं। हम के पास एक विधायक पूर्व सीएम जीतन राम मांझी हैं। ऐसे में एनडीए के पास कुल 128 विधायक हैं इसके अलावा 4 निर्दलीय विधायकों को भी एनडीए के साथ जोड़ दें तो इनके पास 132 वोट होंगे। इतने विधायकों की ताकत पर एनडीए 3 सीटें आसानी से जीत लेगा। चौथी सीट के लिए उसे आठ विधायक और जुटाने होंगे अगर कांग्रेस में टूट ना हो तो यह मुमकिन नहीं दिखता है।
उधर राजद विधायक मुंद्रिका सिंह यादव की मौत के बाद पार्टी के पास विधायकों की संख्या 79 बची है। कांग्रेस के 27 विधायकों को जोड़ दें तो महागठबंधन में वोटों की संख्या 106 हो जाएगी। इस ताकत पर महागठबंधन भी 3 सीटें जीत लेगा।