कर्नाटक में जैसे-जैसे चुनाव की तारीख नजदीक आ रही है सत्तापक्ष और विपक्ष की ओर से जुबानी जंग तेज होती जा रहा है। वहीं एक-दूसरे को पछाड़ने के लिए शह और मात का खेल भी खूब खेला जा रहा है। इसी कड़ी में विधानसभा चुनाव से ठीक पहले सिद्धारमैया सरकार ने लिंगायत समाज को अलग धर्म की मान्यता देने का फैसला लिया है। जानकारों की मानें तो कांग्रेस का ये मास्टरस्ट्रोक बीजेपी के मंसूबों पर पानी फेर सकता है। इसीलिए आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने इस फैसले पर नाराजगी जाहिर की है। नागपुर में आयोजित एक कार्यक्रम उन्होंने कहा है कि एक ही धर्म के लोगों को बांटा जा रहा है। हिंदुओं को संप्रदाय में बांटा जा रहा है, जो किसी भी देश और समाज के लिए घातक है।
मोहन भागवत यहीं नहीं रुके उन्होंने कांग्रेस पर हमला करते हुए कहा, 'भेद के आधार पर दूसरों को चूस कर खाना राक्षसी प्रवृत्ति है, राक्षसी धर्म है। उनलोगों को भगवान ने ऐसा ही बनाया है और वह ऐसा ही करेंगे, जिनको मानव धर्म निभाना है। और हमें बांटने वाले तो तैयार बैठे हैं, क्योंकि उनको अपना असुरीय धर्म निभाना है।' संघ प्रमुख ने कहा, 'उनका काम है कि कितने भी ऐसे प्रयास हों वह आपस में ना बंटे।’
बता दें कि कर्नाटक विधानसभा चुनाव से पहले राज्य मंत्रिमंडल ने 19 मार्च को हिंदू धर्म के लिंगायत पंथ को एक अलग धर्म के रूप में मान्यता देने पर सहमति जताई। राज्य के कानून मंत्री टीबी जयचंद्र ने यह जानकारी दी। जयचंद्र ने मंत्रिमंडल की बैठक के बाद पत्रकारों से कहा, "कर्नाटक राज्य अल्पसंख्यक आयोग की अनुशंसा पर, राज्य मंत्रिमंडल ने सर्वसम्मति से लिंगायत और वीरशैव लिंगायत को धार्मिक अल्पसंख्यक का दर्जा देने का फैसला किया है। " शिव की पूजा करने वाले लिंगायत और वीरशैव लिंगायत दक्षिण भारत में सबसे बड़ा समुदाय हैं, जिनकी आबादी यहां कुल 17 प्रतिशत है। अप्रैल-मई में होने वाले चुनाव में इनके वोट नतीजों में फर्क पैदा कर सकते हैं।