31 अक्टूबर को भारत के लौह पुरुष, भारत रत्न सरदार वल्लभ भाई पटेल की जयंती है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री रघुवर दास ने लोगों से अपील की है की अधिक से अधिक संख्या में राष्ट्रीय एकता दौड़ में शामिल हों। सरदार वल्लभ भाई पटेल की जयंती के बहाने भाजपा अपनी राष्ट्रवादी पार्टी होने के दावे को और पुख्ता करना चाहती है याद रहे कि इसे ही ध्यान में रखकर भाजपा ने पूरे देश में लौह धातु एकत्र करने का अभियान चलाया था। ताकि बाद में सरदार वल्लभभाई पटेल की भव्य मूर्ति का निर्माण किया जा सके।
देश में जनभावना को राष्ट्रीयता के नाम पर माहौल बनाने की कला भाजपा बखूबी जानती है। कभी रथ यात्रा तो कभी राष्ट्रगान पर राजनीतिक फायदे के लिए पार्टी का सुनियोजित अभियान जगजाहिर है। देखा जाए तो भाजपा ने सरदार वल्लभ भाई पटेल का बहुत सोच समझकर भगवाकरण करने की योजना बनाई है।
सरदार वल्लभभाई पटेल का प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू से मतभेद जगजाहिर है। सरदार पटेल का बेलाग और स्पष्ट सोच कांग्रेस के अन्य नेताओं से उन्हें अलग करता है। इसके साथ ही आजादी के बाद उन्होंने जिस तरह से रियासतों को देश में मिलाने का काम किया। यह अंदाज उनके राष्ट्रवादी छवि को और प्रबल बनाता है। रही बात गांधीजी की तो कांग्रेस खुद को धर्म निरपेक्षता से लेकर कई मामले में कुछ इस तरह गांधीजी के इर्द-गिर्द खड़ी करती रही कि भाजपा ने सरदार पटेल के साथ ही जाना उचित समझा।
देखा जाए तो भाजपा सरदार वल्लभ भाई पटेल की छवि को अपने पार्टी से जोड़कर देश में अपनी सियासी जमीन मजबूत करना चाहती है। और वह अपने इस मकसद में बहुत हद तक कामयाब होती दिख रही है। हालांकि ऐसे आयोजनों को अक्सर राष्ट्र निर्माण का मुलम्मा लगाकर पेश किया जाता है।