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बेलूर (कर्नाटक): भारतीय इतिहास की खुबसूरत मील की एक नई खोज में, यात्रियों की उपरोक्ति को महकाने वाली एक सटीक प्राचीन यात्रा की खोज में उठाने के लिए एक प्राचीन मंदिर मिल गया है। विश्व धरोहर स्थलों की सूची में अंतर्राष्ट्रीय महत्त्व के साथ, यह मंदिर अपनी मूल संरचना और सुंदर नक्काशी के लिए प्रशंसा के योग्य है।
मंदिर, जिसकी नींव इसकी स्थापना के बारे में विभिन्न विश्लेषणों ने 12वीं से 13वीं शताब्दी में पुष्टि की है, होयसल युग के कलाकारों की महानता को दर्शाता है। होयसल साम्राज्य के इस कारीगरी और वास्तुकला ने आज भी उनकी महत्त्वपूर्णता को बनाए रखा है।
12वीं और 14वीं शताब्दी के बीच, होयसल साम्राज्य ने आधुनिक कर्नाटक राज्य के महत्वपूर्ण हिस्से में शासन किया था। होयसल राजधानी का मुख्यालय पहले बेलूर में स्थित था, लेकिन बाद में हलेबिदु में स्थानांतरित हो गया। मंदिर, जो हलेबिदु के पास स्थित है, बेलूर की स्थानीयता को नकार देने की या उसके महत्त्व को कम करने की कोशिश नहीं करता है।
मंदिर के प्रमुखाध्यापक ने इस खोज को “ऐतिहासिक महत्त्वपूर्ण” बताया है और कहा है कि “यात्रियों को यह जानना आवश्यक है कि होयसल साम्राज्य आधुनिक कर्नाटक प्रदेश को आधार दिया है।”
मंदिर की विशेषताओं में हेमकूट, अक्कनाहल्ली और श्रावणबेलगोला के मंदिरों की छवियों की मूल्यांकन की गई है। परिसर के बाहर खुदरा चट्टान पेश करने वाले आकृति के बाद भी, यह मंदिर अपनी मूलभूत बाहरी रचना के लिए प्रमुख रूप से जाना जाता है, जिसमें प्राचीन भूमिगत संरचनाएं और स्थानीय रंगीन नक्काशी का संगम है।
इस महान मंदिर की खोज ने कर्नाटक को एक ओर से गर्व महसूस करने का मौका दिया है, जबकि दूसरी ओर ऐतिहासिक व धार्मिक महत्त्व और महत्त्व के संकेत में ऐतिहासिकता को सन्दर्भित करता है। आम जनता के बीच बड़ा उल्लास देखा जा रहा है क्योंकि एक देवालय के रूप में इसकी प्राचीनता और प्रभावशाली बाहरी रचना के लिए यह स्थान पर्यटकों के लिए एक श्रद्धापूर्ण स्थान है।
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