यूक्रेन में जारी युद्ध से पहले ही रूस के बर्दाश्त नहीं हो रहे काला सागर अनाज समझौते ने दुनियाभर में हहाकार मचाया है। इस समझौते के कारण खाद्य कीमतों में ज्यादा उछाल नहीं आया और यह दुनिया के गरीब देशों के लिए एक महत्वपूर्ण समझौता माना जाता है।
रूस और यूक्रेन दोनों ही अग्रणी कृषि उत्पादक देशों में से हैं और काला सागर अनाज समझौता उनके बीच संयुक्त राष्ट्र और तुर्की की मध्यस्थता से हुआ था। इस समझौते के तहत यूक्रेन अपने अनाज का निर्यात कर सकता था लेकिन बाद में रूस ने अपने बंदरगाहों के जरिए अनाज को ले जाने की अनुमति देने से मना कर दिया, जिससे काला सागर अनाज समझौते को तोड़ दिया गया है।
रूस ने लंबे समय से इन निर्यातों से संबंधित कुछ हिस्सों को लागू नहीं किया है, जिसके कारण यूक्रेन में जारी युद्ध के बावजूद, काला सागर अनाज समझौते ने खाद्य कीमतों पर नियंत्रण बनाए रखने में मदद की थी। इस समझौते के बाद से लगभग 32.9 मिलियन मीट्रिक टन अनाज काला सागर से जा चुका है और मक्का और गेहूं इसमें सबसे अधिकांश था।
अब रूस बाधाओं को दूर करने के लिए फिर से समझौते में यूक्रेन से अनाज वाले जहाजों को भेजने पर विचार करेगा। यह समझौता विशेष रूप से खाद्य सुरक्षा मामलों के लिए महत्वपूर्ण है क्योंकि रूस और यूक्रेन के अलावा दुनिया के अन्य देशों के लिए भी ये अनाज महत्वपूर्ण हैं।
यह समझौता भारतीय राजनीति के लिए भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि भारत भी काला सागर में बोस्तन सेल का बहुत महत्वपूर्ण खाद्य आपूर्ति द्वार है। ऐसे में बाइडेन सरकार को भी इस समझौते को समर्थन करना होगा और इस समझौते को पुनर्संजोग करने के लिए समझौता निर्माण में सक्रिय भूमिका निभानी होगी।
इस समझौते से खाद्य कीमतों पर बहुत असर पड़ा है और दुनिया के गरीब देशों के लिए ये एक महत्वपूर्ण समझौता हो गया है। अब रूस और यूक्रेन के बीच की मुद्दों को हल करने के लिए फिर से समझौते की कड़ी प्रायोजनपूर्ण बातचीत करना होगा। विश्व समुदाय की उम्मीद है कि दोनों देश इसे जल्दी ही सुलझा लेंगे और खाद्य सामरिक मामलों में समझौता स्थापित करेंगे।
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