झारखण्ड भाजपा के कद्दावर नेता और पूर्व मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा इस बार भी राज्यसभा जा पाएंगे या दिल्ली से कोई नया पात्र टपक पड़ेगा. यह सवाल भाजपा के सभी कार्यकर्ताओं के जेहन में अभी कौंध रहा है. कायदे से पिछली बार ही अर्जुन मुंडा को राज्यसभा भेजा जाना था. लेकिन रघुवर दास की अडंगेबाज़ी के चलते वो राज्यसभा की जगह राजनीतिक बनवास झेलते रहे.
इस बीच पार्टी ने उन्हें अलग–अलग राज्यों के चुनाव में खूब आजमाया और अर्जुन अपने टास्क में सफल भी हुए. चाहे गुजरात के आदिवासी बहुल इलाकों में चुनाव प्रचार का मामला हो या अभी पूर्वोत्तर राज्यों में. गुजरात में अर्जुन मुंडा को जिन आदिवासी बहुल क्षेत्रों की जिम्मेवारी दी गयी थी, वहां भाजपा ने ऐतिहासिक सफलता हासिल की. कांग्रेस के परम्परागत वोटर रहे आदिवासी समाज ने पहली बार भाजपा को जिताया. पूर्वोत्तर में भी नतीजे सबके सामने हैं.
ऐसे में अर्जुन के समर्थक अब अधीर होने लगे हैं. उन्हें लगने लगा है कि पार्टी में अर्जुन मुंडा को बेवज़ह निशाना बनाया जा रहा है. 4 साल से मुंडा जैसा नेता राजनीतिक बनवास काट रहा है. इससे झारखण्ड के आदिवासी और दलित समाज में बेहद गलत सन्देश जा रहा है. अगर अर्जुन मुंडा को इस बार भी राज्यसभा नहीं भेजा गया और उन्हें कोई बड़ी जिम्मेवारी नहीं दी गयी तो झारखण्ड का पहले से नाराज़ आदिवासी समाज और भी दुखी होगा.