झामुमो नेता और पूर्व मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने कहा है कि वे नहीं जानते की सालखन मुर्मू कौन हैं। उनके इस बयान के कई राजनीतिक मतलब हैं। अभी कुछ ही दिनों पहले सालखन मुर्मू के नेतृत्व में रांची में एक रैली आयोजित की गयी थी। राज्य सरकार की विभिन्न आदिवासी मूलवासी सहित अन्य नीतियों के खिलाफ आदिवासी सेंगल अभियान की ओर से इस रैली का आयोजन किया गया था। जिसमें झारखण्ड सहित उड़ीसा, छत्तीसगढ़, बंगाल, बिहार और असम से भी लोग आये हुए थे।
उस रैली में कई आदिवासी संगठनों ने शिरकत की थी। रैली में सालखन मुर्मू ने आदिवासियों और मूलवासियों से अपील की थी की वे उनके मुहिम का समर्थन करें। उनकी अगुवाई में झारखण्ड में नयी सरकार बने इसकी पहल करें। रघुवर सरकार की नीतियों के खिलाफ बोलते हुए उन्होंने ने राज्य में तीसरे मोर्चे की सरकार बनाने का दावा किया था। उन्होंने झामुमो और झाविमो जैसे झारखण्ड नामधारी दलों की आलोचना करते हुए यह आरोप लगाया था कि राज्य के आदिवासियों की दुर्दशा के लिए ये दल ही जिम्मेवार हैं।
राजनीतिक जानकारों की मानें तो सालखन मुर्मू की आदिवासियों के बीच खासकर एक क्षेत्र विशेष में अच्छी पकड़ है। हालांकि चुनाव में अभी एक वर्ष से ज्यादा का समय बाकी है। ऐसे में अभी सालखन या ऐसे कोई अन्य नेता का प्रभाव चुनाव के दरम्यान भी बना रहेगा यह दूर की कौड़ी है।
पर हेमंत सोरेन यह बात भलीभांति जानते हैं कि सालखन मुर्मू जैसे नेता पर चर्चा करना उनकी राजनैतिक हैसियत को स्वीकार करना होगा। इसका असर यह होगा की आदिवासी समाज भी कहीं न कहीं सालखन जैसे नेता के वजूद को मानने लगेगा जो हेमंत सोरेन और उनकी पार्टी जेएमएम के लिए भविष्य में संकट खड़े कर सकता है। इसलिए हेमंत सोरेन से जब सालखन मुर्मू के तीसरे मोर्चे की कवायद के बारे में सवाल किया गया तो उन्होंने सालखन के अस्तित्व को ही नकार दिया।