बगोदर के पूर्व विधायक और सीपीआई(एमएल) के नेता विनोद सिंह ने सिमडेगा की 11 साल की संतोषी कुमारी मौत पर आयी डीएलएसए (जिला विधिक सेवा प्राधिकार) की रिपोर्ट पर सरकार को आड़े हाथों लिया है । रिपोर्ट में इस बात का खुलासा हुआ है कि सिमडेगा में बच्ची की मौत भूख से ही हुई थी। संतोषी की माँ कोइली देवी ने बताया कि वह शारीरिक रूप से कमजोर थी और और खाना नहीं मिलने पर भूख से मर गयी। ध्यान रहे कि उसके परिवार का राशन कार्ड निरस्त कर दिया गया था जिसकी वजह से घटना के काफी पहले से उसे जन वितरण प्रणाली की दुकान से राशन नहीं मिल रहा था।
विनोद कुमार ने कहा है कि रिपोर्ट से इस बात की पुष्टि हुई है कि सरकार शुरू से ही पूरे मामले की लीपापोती कर रही है। जबकि ये बात शूरू में ही मीडिया के माध्यम से स्पष्ट हो गयी थी। हालांकि ये सरकार की ही रिपोर्ट है कि सिमडेगा, गढ़वा, झरिया और देवघर में जो मौतें हुई हैं उनके परिवारों स्थिति बदहाल थी उनके घर में अन्न का एक दाना नहीं मिला। इनमें से दो परिवारों का राशनकार्ड बना ही नहीं था और जिन दो परिवारों का था उन्हें दो महीने से राशन मिला ही नहीं था। वहीं दूसरी ओर सच्चाई ये है कि अभी भी हजारों वंचित परिवार ऐसे हैं जिनका राशनकार्ड बना ही नहीं है।
उन्होंने कहा कई वंचित परिवार ऐसे हैं जिनका कार्ड अन्त्योदय योजना के तहत बनना चाहिए था ताकि उन्हें 35 किलो अनाज अनिवार्य रूप से मिले, उनका सामान्य राशन कार्ड बनाया गया है। पर इससे बड़े आश्चर्य की बात तो ये है कि इन मौतों के बाद भी सरकार पूरे मामले की लीपापोती में लगी हुई है। सरकार कार्पोरेट सम्मेलन और माइनिंग सम्मेलन करने में व्यस्त है। उन्होंने कहा कि चाहे न्यूनतम मजदूरी का मसला हो, राशनकार्ड का मसला हो, बदहाली का हो, रघुवर सरकार कहीं पर केन्द्रित है ही नहीं।
श्री सिंह ने राज्य सरकार को किसानों के विस्थापन के मुद्दे पर भी सवाल उठाया, कहा कि जब लोगों से वसूलने की बात हो तो सरकार एक देश, एक कानून, एक टैक्स की बात करती है, लेकिन जब लोगों को उचित दर पर मुआवजा देने की बारी हो तब वह ये बात भूल जाती है। वह चाहे राज्य में चल रहे किसी प्रोजेक्ट की बात हो, एनएच की बात हो, रेलवे की बात हो। बल्कि विस्थापितों से जमीन लेने में कोई परेशानी नहीं हो इसके लिए कानून में संशोधन किया जाता है। सोशल ऑडिट के प्रावधान को हटा दिया जाता है। कुल मिला कर देखा जाय तो रघुवर सरकार की प्राथमिकता में भूख या गरीबी से हो रही मौत नहीं हैं। वे तो कुछ कार्पोरेट घरानों के लिए काम कर रहे हैं, इसके लिए बड़कागांव से लेकर गोला तक में किसानों पर गोली चलवाने से भी उन्हें कोई गुरेज नहीं है।