लोकसभा ने गुरुवार को लंबी बहस और संशोधन प्रस्ताव के बाद ऐतिहासिक मुस्लिम महिला (विवाह अधिकार संरक्षण) विधेयक-2017 पास कर दिया है. लोकसभा में यह बिल पास होते ही मुस्लिम महिलाओं के चेहरे खिल उठे. साथ ही केंद्रीय कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने अपनी मेज थपथपाकर खुशी जाहिर की. अब तीन तलाक देने वाले मुस्लिम पुरुषों की खैर नहीं होगी.
इससे पहले आज केंद्र सरकार ने लोकसभा में इस बिल को पेश किया. कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने लोकसभा में बिल पेश करते हुए कहा कि आज का दिन ऐतिहासिक है. सरकार मुस्लिम महिलाओं को उनका हक दिलाने के लिए इस बिल को लाई है. हालांकि RJD, BJD समेत कई विपक्षी पार्टियों ने इस बिल का विरोध किया.
विपक्षी पार्टियों ने बिल में सजा के प्रावधान को गलत बताया है. लोकसभा में इस मुद्दे पर लंबी बहस हुई. आखिर में केंद्रीय मंत्री ने सदन में बिल पर उठाए गए सवालों पर जवाब दिया. इसके बाद संशोधन प्रस्ताव पर वोटिंग हुई. वोटिंग के दौरान मुस्लिम महिला (विवाह अधिकार संरक्षण) विधेयक-2017 पर पेश किए गए सभी संशोधन प्रस्ताव खारिज हो गए. इसके बाद लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन ने इस बिल के पास होने की घोषणा कर दी.
तीन तलाक पर विधेयक की मुख्य बातें:
1. तीन तलाक पर लाए गए विधेयक में कहा गया है कि यह विधान विवाहित मुस्लिम महिलाओं को लैंगिक न्याय और लैंगिक समानता के वृहतर सांविधिक ध्येयों को सुनिश्चित करेगा और उनके भेदभाव के प्रति सशक्तिकरण के मूलभूत अधिकारों के हित साधन में सहायक होगा.
2. इसमें कहा गया है कि किसी व्यक्ति की ओर से उसकी पत्नी के लिये, शब्दों द्वारा, चाहे बोले गए हों या लिखित हों या इलेक्ट्रानिक रूप में हो या किसी अन्य रीति में हो. चाहे कोई भी हो, तलाक की उद्घोषणा अवैध एवं अमान्य होगी.
3. इसमें कहा गया है कि जो कोई व्यक्ति अपनी पत्नी को इस प्रकार से तलाक की उद्घोषणा करता है, उसे तीन वर्ष तक कारावास और जुर्माने से दंडित किया जायेगा.
4. विधेयक के कारणों एवं उद्देश्यों में कहा गया है कि सुप्रीम कोर्ट ने शायरा बानो बनाम भारत संघ एवं अन्य मामले तथा अन्य संबद्ध मामलों में 22 अगस्त 2017 को 3:2 के बहुमत से तलाक ए बिद्दत की प्रथा को निरस्त कर दिया था. यह निर्णय कुछ मुस्लिम पुरुषों की ओर से विवाह विच्छेद की पीढ़ियों से चली आ रही स्वेच्छाचारी और बेतुकी पद्धति से मुस्लिम महिलाओं को स्वतंत्र करने में बढ़ावा देता है.
5. इसमें कहा गया है कि तलाक ए बिद्दत को निरस्त करने के सुप्रीम कोर्ट के निर्णय और एआईएमपीएलबी के आश्वासनों के बावजूद देश के विभिन्न भागों से तलाक ए बिद्दत के माध्यम से विवाह तोड़ने की रिपोर्ट प्राप्त हुई हैं. इसलिये यह अनुभव किया गया कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश को प्रभावी करने के लिये और अवैध विवाह विच्छेद की पीड़ित महिलाओं की शिकायतों को दूर करने के लिये कार्रवाई आवश्यक है.