मनोज कुमार सिंह
बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री और राजद के राष्ट्रीय अध्यक्ष लालू प्रसाद से मिलकर उनके बड़े बेटे तेजप्रताप यादव भावुक हो गए, आंखें भर आई। उनको लालू यादव ने तसल्ली दी और कहा कि अभी बहुत लंबी लड़ाई लड़नी है, तैयारी कीजिए। तेज प्रताप के अलावा सोमवार को बिहार के पूर्व मंत्री जदयू नेता उदय नारायण चौधरी और समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष देवेंद्र प्रसाद यादव ने भी मुलाकात की।
तेज प्रताप यादव के आंसू के पीछे गठबंधन की राजनीति एक नया स्वरूप ले रही है, राजद सुप्रीमो लालू यादव के करीबी माने जाने वाले बिहार के विधायक भोला यादव ने सोमवार को कहा कि झारखंड में भी चुनाव पूर्व गठबंधन बेहद जरूरी है। नेता प्रतिपक्ष एवं झामुमो के कार्यकारी अध्यक्ष हेमंत सोरेन से तेज प्रताप की मुलाकात अहम मानी जा रही है। सूत्रों का मानना है कि झारखंड में होने वाले आगामी चुनाव के मद्देनजर सभी दल एकमत होकर सांप्रदायिक ताकतों के खिलाफ चुनाव लड़ना चाहते हैं। झारखंड में पहले भी ऐसे गठबंधन हो चुके है। लंबे समय से विपक्षी पार्टियों को एकजुट करने में लालू यादव सक्रिय रहे हैं, रांची में उनकी उपस्थिति कोई न कोई राजनीतिक स्वरूप ले रही होगी।
विगत दिनों झारखंड के पिछड़े नेता गोलबंद हो रहे हैं, ऐसे में लालू यादव कोई नई तकनीक खोज कर भाजपा के खिलाफ रोडमैप तैयार कर दें, ऐसा मुमकिन दिखता है। यद्यपि कांग्रेस की नजर भी ओबीसी वोटरों पर टिकी हुई है और संगठन के स्तर पर झारखंड के आरक्षण नीति के विरुद्ध पिछड़ों को गोलबंद करने की दिशा में मंथन चल रहा है। कांग्रेस के नए प्रदेश अध्यक्ष डॉ अजय कुमार के पद संभालने के तुरंत बाद पार्टी फोरम से यह स्पष्ट संकेत दिया गया है कि बूथ स्तर पर OBC सेल बनाया जाए। उनका संकेत साफ है कि पिछड़ों को गोल बंद करके नई राजनीति साधी जा सकती है, क्योंकि झारखंड में अल्पसंख्यक मुसलमानों का बड़ा तबका पसमांदा मुसलमानों का है। अगर कांग्रेस अपने योजना में कामयाब हो जाती है तो बिना गठबंधन अपने जनाधार को बढ़ाने में सफलता प्राप्त कर सकती है।
महागठबंधन बनने में कई पेंच भी दिखते हैं, क्योंकि 81 विधानसभा सीटों पर सभी पार्टियों के लोग सीट बंटवारे के मुद्दे पर अपनी महत्वाकांक्षा से पीछे हट जाएंगे, ऐसा दिखता तो नहीं है। फिर भी क्रिकेट और राजनीति में कुछ भी असंभव नहीं होता। राजनीतिक विश्लेषकों का यह मानना है कि महागठबंधन में झामुमो, कांग्रेस, जेवीएम, राजद यदि यह सभी पार्टियां एक साथ होंगे तो सीट बंटवारे को लेकर पेच फंस सकता है। दबी जुबान से सभी पार्टियों के नेता हेमंत सोरेन के नेतृत्व में चुनाव तो लड़ना चाहते हैं लेकिन स्थानीय कार्यकर्ताओं के दबाव में गठबंधन की धुरी कितनी मजबूत होगी, यह कहना थोड़ा मुश्किल है और यदि गठबंधन का पेंच उलझ गया तो इसका सीधा फायदा भारतीय जनता पार्टी को होगा। भाजपा संगठन के लोगों की निगाहें तेज प्रताप यादव और तेजस्वी यादव पर है। दोनों झारखंड के पिछड़े जमात मे कितना प्रभाव छोड़ेंगे, इस पर थोड़ा संशय है, क्योंकि बिहार और झारखंड की राजनीति की समझ रखने वाले लोग यह जानते हैं झारखंड में यादवों की गोलबंदी थोड़ी मुश्किल है क्योंकि यादव बहुल विधानसभाओं में ज्यादातर भाजपा के लोग सफल हुए हैं।